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हेम दृष्टांत झड़े, इण लेखै शुभ जोगां नै निर्जरा कहीजै, उत्तराध्येयन अ० ३४गाया ५७ में तेजू पद्म सुकल लेस्या नै धर्म लेस्या कही, अनै छह लेस्या नै कर्म लेस्या पिण कही, तेजू पद्म सुकल लेस्या सू पुन्यबंधै, तिण लेखै तौ कर्म लेस्या कही, अनै तेजू पद्म सुकल सूं अशुभ कर्म झरे, तिण लेस्या नै धर्म लेस्या कहीजे, धर्म लेस्या कहौ भावे निर्जरा कहौ । कर्म लेस्या कहौ, भावे आश्रव कहौ।
२७. समदृष्टि री मति से मतिज्ञान खेतसीजी स्वामी बोल्या-भगवती नै रामचिरत साधु गावै, सो हूं तो बराबर जांगूं । साधु सत्य भाषा बोले सावध बोलवा रा त्याग ते लेखे, नंदी सूत्र मै समदृष्टि री मति ज्ञान ही छै ते लेखै ।
२८. दोयां मै एक झूठ पाली मै भारमलजी स्वामी खेतसीजी स्वामी जोधपुरिया वास मै गोचरी पधार्या । तिहां टीकमजी पिण आया। लोक बोल्या-चरचा करो।
जद भारमलजी स्वामी टीकमजी ने कह्यो-नित्य पिंड लेणौ सूत्र मै तो वरज्यौ है नै थे लेवौ, सो दोष जाणौ हौ के नहीं ? ___ जद टीकमजी बोल्यौ-म्हे तो न्हांखीतौ धोवण नित्य लेवां, तिणरौ दोष नहीं।
जद भारमलजी स्वामी बोल्या-थे धोवण रौ नाम क्यूं लेवी, पाणी पिण नित्य वहिरो छौ।
जद टीकमजी बोल्यौ-म्हे पाणी न वहिरां ।
जद भारमलजी स्वामी बोल्या-थे पाणी वहिरौ छौ। इम वार-वार कह्यौ।
जद लोक बोल्या-ऐ तो कहै-म्हे नित्य पांणी न ल्यां, थे कहौ छौ ऐ लेवै है, सो दोयां मै एक नै तौ झूठ लागै है।
जद भारमलजी स्वामी बोल्या-ए नित्य ऊन्हौ पांणी एक घर नौ लेवै ते पिण कलाल रौ बहिरै छै। जद टीकमजी कष्ट थयौ। वले भारमलजी स्वामी बोल्या-ए नित्य आहार पिण एक घर नौ लेवै छै । ते किम जे आज वहिर्यो अनै दूजे दिन बिहार करतां फेर उण घर रौ लेवै इण लेखै आहार पिण नित्य पिंड लेवै छै । जद टीकमजी शुद्ध जाब देवा असमर्थ थयौ । पर्छ ठिकाण आय भीखणजी स्वामी नै समाचार कह्या आ पिण चरचा सं १८५५ रै वर्ष कीधी।