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भिक्खु दृष्टांत रुपए, जो स्थानक में रहते हैं, उन्हीं के मानने चाहिए।" इस विषय को समझाने के लिए स्वामीजी ने दृष्टांत दिया
"अमुक गढ में इतना खजाना है; वह खजाना गढपति का ही होता है ।"
"इसी प्रकार स्थानक के निमित्त जो रुपये हैं, वह परिग्रह स्थानक में रहने वालों का ही मानना चाहिए।"
२१७. पंक्तियां टेढी-मेढी क्यों ? हेमजी स्वामी प्रतिलिपि करते थे। उन्होंने स्वामीजी को अपना लिखा हुआ पन्ना दिखलाया। पंक्तियों को टेढा-मेढा देख स्वामीजी बोले-"किसान हल जोतता है, वह भी हल की रेखा को सीधा बनाता है। तूने पंक्तियां टेढ़ी-मेढी क्यों लिखी ? पंक्तियां सीधी होनी चाहिए। तब हेमजी स्वामी बोले-"ठीक है, स्वामीनाथ !"
२१८. क्या आपने व्याकरण पढा है ? स्वामीजी के पास एक ब्राह्मण आया और उसने पूछा-"साधुजी ! आपने व्याकरण पढा है ?"
स्वामीजी बोले--"हमने व्याकरण नहीं पढा।"
तब ब्राह्मण बोला--"व्याकरण पढे बिना शास्त्र का अर्थ नहीं समझा जा सकता ।"
तब स्वामीजी बोले-“तुम तो व्याकरण पढे हो?" तब वह बोला -"मैं तो व्याकरण पढा हूं।" "तुम तो शास्त्र का अर्थ समझ लेते हो?" तब वह बोला- "मैं तो शास्त्र का अर्थ समझ लेता हूं।" तब स्वामीजी ने कहा-"कयरे मग्ग मक्खाया-इस पाठ का अर्थ करो।"
तब वह ब्राह्मण बोला-"कयरे" का अर्थ है-कर, “मग्ग" का अर्थ है-मूंग और 'अक्खाया' का अर्थ है-उन्हें 'आखा'-अक्षत रूप में अर्थात् बिना तोड़े नहीं खाना चाहिए।"
तब स्वामीजी बोले—यह अर्थ तो सही नहीं है ।" तब वह बोला-"इसका अर्थ क्या है ?"
तब स्वामीजी बोले-"कयरे" का अर्थ है-कितने, 'मग्ग' का अर्थ है-मोक्षमार्ग, और अक्खाया का अर्थ है-तीर्थंकरों द्वारा आख्यात-कहे गए हैं। इस पाठ का अर्थ यह है।"
२१९. केवली राज्य कैसे भोगेगा? संवत् १८५४ की घटना है । स्वामीजी ने चार साधुओं के साथ खैरवा में चौमासा किया । वहां पर्युषण के दिनों में कुछ श्रावक गच्छवासियों (यतियों) के पास व्याख्यान सुन वापस स्वामीजी के पास आए और कहने लगे-“स्वामीनाथ ! आज हमने उपाश्रय में व्याख्यान सुना, उसमें ऐसी बात कही गई—कूर्मापुत्र ने केवली होने के बाद छह मास