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दृष्टांत : २१२-२१६
२०५ २१२. लेटे-लेटे करेंगे किसी ने भीखणजी स्वामी से कहा--"आप वृद्ध हैं। आपकी आयु बहुत अधिक है। इसलिए आप प्रतिक्रमण बैठे-बैठे करें। आप खड़े होने का इतना कप्ट क्यों करते
तब स्वामीजी बोले- "यदि हम बैठे-बैठे प्रतिक्रमण करेंगे, पीछे होने वाले लेटेलेटे करेंगे, यह संभव है।
२१३. महात्मा-धर्म पुर की घटना है । स्वामीजी ने कहा- "दश प्रकार का श्रमण-धर्म है।" तब जैचंद वीराणी बोला -"महाराज ! दश प्रकार का यति-धर्म ।" तब स्वामीजी ने कहा- "भले ही दश प्रकार का महात्मा-धर्म कहो न !"
२१४. जैसी नीति वैसा फल कोई साधु बार-बार असावधानी करता है, पर उसकी नीति में अन्तर नहीं।' उस पर स्वामीजी ने दृष्टांत दिया-"अनाज का कण पड़ा हुमा देख कर किसी साधु से गुरु ने कहा --'यह अनाज का कण पड़ा है, इस पर पैर मत रखना।'
तब वह बोला---'स्वामीनाथ ! पैर नहीं रखूगा।'
थोड़ी देर बाद इधर-उधर घूमता हुआ आया और उस अनाज के कण पर पैर रख दिया।
तब गुरु बोले-'तुम्हें इस पर पैर रखना बरजा था न ? तब वह साधु बोला-'स्वामीनाथ ! मेर। ध्यान नहीं रहा ।'
तब गुरु बोले-'अब इस पर पैर रख दिया, तो कल सबेरे तुम्हें 'विगय' खाने का त्याग है।'
थोड़ी देर बाद फिर इधर-उधर घूमता हुआ आया और उस पर पैर रख दिया ।
इस प्रकार असावधानी के कारण उसने बार-बार उस पर पैर रखा, किन्तु वह उस अनाज के कण पर पैर रखना और विगय-वर्जन करना चाहता नहीं है। उसकी सावधानी में कमी है । दोष की स्थापना नहीं हैं, इसलिए उसकी नीति शुद्ध है। यदि नीति शुद्ध हो, पर कर्मों के उदय से असावधानी हो जाए, तो उससे कोई असाधु नहीं बनता । और मोह के उदय से जान-बूझ कर दोषों का सेवन करता है, उनकी स्थापना करता है और उनका प्रायश्चित्त भी नहीं करता, उससे वह असाधु होता है ।
२१५. एक अक्षर का अन्तर किसी ने पूछा- "तुममें और अमुक संप्रदाय वालों में क्या अन्तर है ?
तब स्वामीजी बोले -"एक अक्षर का अन्तर है-एक अकार का अन्तर है । साधु और असाधु में 'अकार' का अन्तर होता है, वही हम में और इनमें अन्तर है ।
२१६ .परिग्रह किसका? कोई स्थानक के लिए रुपए देने की घोषणा करता है । तब स्वामीजी बोले-"ये