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________________ २०४ भिक्षु दृष्टांत यदि हम दें, तो हमारे साधुपन में दोष लगता है । और तुम भिखारी आदि को देते हो, उसमें तुम्हें पुण्य होता है अथवा मिश्र होता है।" ___ इस पर स्वामीजी ने दृष्टांत दिया-"जिस बवंडर से हाथी उड़ जाता है, उससे रूई की पूनी क्यों नहीं उड़ेगी ? अवश्य ही उड़ेगी।" "इसी प्रकार साधु से अन्य भिखारी आदि को दान देने से साधु का व्रत टूट जाता है, तो फिर गृहस्थ को पाप क्यों नहीं लगेगा? लगेगा ही।" २१०. हिंसा के बिना धर्म नहीं होता तो? हिंसा धर्मी कहते हैं--हिंसा के बिना धर्म नहीं होता। वे दृष्टांत देकर कहते हैं-दो श्रावक थे। उनमें से एक ने अग्नि के आरंभ का त्याग किया और दूसरे ने नहीं किया। दोनों ने एक-एक पैसे के चने लिए। जिसे अग्नि के आरंभ का त्याग नहीं था, उसने चनों को भुन कर भंगड़े बना लिए और जिसने अग्नि के आरंभ का त्याग किया था, वह कोरे चने चबा रहा था। इतने में एक मास के उपवास के पारणे के लिए मुनिराज उसके घर पधारे । जिसे त्याग नहीं था, उसने भंगड़े देकर तीर्थकर गोत्र बंध कर लिया और जिसे त्याग था वह टुगर-टुगर देखता रहा। वह क्या दान देगा? ___ 'इस प्रकार हिंसा से धर्म होता है, हिंसा के बिना धर्म नहीं होता' जो इस प्रकार कहते थे, उस पर स्वामीजी ने दृष्टांत दिया-"दो श्रावक थे। उनमें से एक ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार किया और दूसरे ने अब्रह्मचर्य का त्याग नहीं किया। शादी की। बाद में उसके पांच पुत्र पैदा हुए। उन्होंने धर्म का तत्त्व समझा। उनमें दो वैरागी बने । पिता ने उन दोनों को हर्षोल्लास के साथ दीक्षा की स्वीकृति दी । बहुत हर्षोल्लास आया उससे उसने तीर्थंकर गोत्र का बंध कर लिया। तुम हिसा में धर्म कहते हो तो तुम्हारे मतानुसार अब्रह्मचर्य में भी धर्म होगा। तुम्हारे मतानुसार हिंसा के बिना धर्म नहीं होता, तो अब्रह्मचर्य के बिना भी धर्म नहीं होता। इस प्रकार उत्तर सुन कर वह हतप्रभ और वापस उत्तर देने में असमर्थ हो गया। २११. क्या कोई है रे बैरी ? 'किसी को बैरी नहीं बनाना चाहिए।' इस पर स्वामीजी ने दृष्टांत दिया"क्या कोई है रे बैरी ? लोक-भाषा में कहा जाता है, किसी को ऋण देकर देखो।' (ऋण चुकाना नहीं चाहता, इसलिए अपने आप बैरी बन जाता है ।) क्या कोई है रे बैरी ? धर्म की भाषा में कहा जाता, "किसी से कड़े प्रश्न पूछ कर देखो।' उसे कड़े प्रश्न का उत्तर नहीं आता है, तो वह अपने आप बैरी बन जाता है। "क्या कोई है रे बैरी ?" तब कहा जाता है, किसी की खामी बताकर देखो । खामी बताने पर उसे अप्रिय लगता है, तब वह अपने आप बैरी बन जाता है।"
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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