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दृष्टांत : २२० तक राज्य किया था। उस अवधि में कुछ साधु उनके पास आकर खड़े हो गए, पर उन्होंने वंदना नहीं की।
- तब कूर्मापुत्र बोले- 'मुझे केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है, फिर तुम वंदना नहीं करते हो, इसका क्या कारण ?
तब साधु बोले-'आप केवली हैं, परंतु आप गृहस्थ के वेष में हैं, इसलिए हमने वंदना नहीं की।'
तब कूर्मापुत्र बोला-'तुमने ठीक कहा । अब मैं इस बात को समझ गया हूं।' “यह बात हमने उपाश्रय में सुनी है । क्या यह सच है ?" .
तब स्वामीजी बोले--- "इस बात को जो सच मानता है, वह सम्यग्दृष्टि नहीं । जो राज्य भोगता है, वह मोहकर्म का उदय है और केवली मोह-कर्म को क्षीण करके होता है; सो केवली होने के बाद राज्य को कैसे भोगेगा ? इस बात का वाचन करने वाले में सम्यग्दृष्टि नहीं है, ऐसा प्रत्यक्ष दिखाई देता है। और तुम जैसे श्रोतामों का मन भी संशय से भर जाता है । इस प्रकार कह कर स्वामीजी ने उन्हें समझा दिया।
२२०. बुद्धि के बिना सम्यग्दृष्टि कैसे होगा? केलवा में नगजी नाम का एक श्रावक था, वह अचक्षु था। वह ज्यादा बुद्धिमान भी नहीं था। वीरभाणजी ने कहा -"हमने नगजी को सम्यग्दृष्टि वाला बना दिया
तब स्वामीजी बोले-'सम्यग्दृष्टि आए, ऐसी तो उसकी बुद्धि ही नहीं लगती। फिर उसे सम्यग्दृष्टि वाला कैसे बनाया और उसे क्या सिखाया ?"
तब वीरभाणजी बोले --- "ओलखणा दोरी भवजीवां'–यह गीतिका उसे सिखाई। और एक 'नन्दण मनिहारे का व्याख्यान' सिखाया।"
कुछ दिनों बाद स्वामीजी केलवा पधारे । स्वामीजी ने नगजी से पूछा- "तुमने 'नन्दण मनिहारे का व्याख्यान' सीखा है, सो वह 'मणिया' (मनका) लकड़ी का है या सोने का है या रुद्राक्ष की माला है ?"
तब नगनी बोला-"वह मनका शास्त्रों में आया है, इसलिए वह सोने का होगा, लकड़ी का या रुद्राक्ष की माला का कैसे होगा ?"
तब स्वामीजी ने पूछा--- "रे नगजी ! 'साधवीयां ने जड़णो चाल्यो'-सो यह 'धविया' (धौंकनी) गाडिए लुहारों की छोटी 'धवियां' है या दूसरे लुहारों की बड़ी 'धवियां'-धौंकनिया हैं ?"
___ तब नगजी बोला-"वे छोटी क्यों होंगी ? शास्त्रों में कहा है, तो वे बड़ी ही होंगी।"
___ स्वामीजी मे मन में जान लिया जिसमें बुद्धि नहीं, वह सम्यग्दृष्टि वाला कैसे होगा ? वीरभाणजी ने कहा-नगजी को सम्यग्दृष्टि वाला बना दिया, यह बात कमजोर निकली।