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दृष्टांत : १५४-१५६
१८३. पर बिठा कर लाने में भी धर्म होगा। साधु तो उन दोनों की ही सवारी नहीं कर सकता।
१५४. पांचों का एक साथ पृथक्करण चंडावल की घटना है। फत्तूजी आदि पांच साध्वियों से स्वामीजी ने कहातुम्हें जो वस्त्र चाहिए वह ले लो। उन्होंने जो मांगा वह उन्हें दिया। मन में शंका उत्पन्न हुई कि वस्त्र प्रमाण से अधिक होना चाहिए । तब स्वामीजी ने मुनि अखेरामजी को वहां भेजा और साध्वियों के स्थान से उनके वस्त्र मंगवा कर उनका नाप किया । तब वस्त्र प्रमाण से अधिक निकले। तब स्वामीजी ने उन्हें बहुत उलाहना दिया। वे भविष्य में वस्त्र आदि की मर्यादा रख सकेंगी-ऐसा विश्व स पैदा नहीं हुआ, इसलिए स्वामीजी ने उन पांचों साध्वियों का एक साथ संघ से सम्बन्ध-विच्छेद कर दिया।
१५५. सामायिक नहीं तो संवर कर ढूंढाड प्रदेश में एक भाई था। उसे वीरभाणजी ने शंकाशील बना दिया। यह स्वामीजी के पास आया । स्वामीजी ने उसे सामायिक करने को कहा।
तब वह बोला-सामायिक तो नहीं करूंगा। (मैं अब आपको साधु नहीं मानता) सभव है सामायिक में आपके लिये मेरे मुंह से 'स्वामी महाराज' यह शब्द निकल जाए। ऐसा कहने से मुझे सामायिक में दोष लगेगा।
तब स्वामीजी बोले --तू एक मुहूर्त का संवर कर । संवर की प्रेरणा दे उसे संवर करा दिया। फिर उससे चर्चा की, भिन्न-भिन्न प्रकार से तत्त्व को समझा, उसकी शंका मेट दी। वह स्वामीजी के चरणों में प्रणत हो गया।
१५६. कहीं सूत्र में आया होगा स्वामीजी नाथद्वारा में विराज रहे थे। नणसिंहजी का दामाद उदयपुर से वहां आया । नणसिंहजी ने कहा-महाराज ! आप इनको समझाएं।
तब स्वामीजी उसे समझाने लगे। उसने कहा-साधु को आधाकर्मी (साधु के निमित्त बनाए हुए) स्थानक में नहीं रहना चाहिये।
तब वह बोला-ठीक है, नहीं रहना चाहिये ।
स्वामीजी ने आगे कहा--कुछ व्यक्ति साधु कहलाते हैं और आधाकर्मी स्थानक में रहते हैं।
तब वह बोला-यदि रहते हैं तो कहीं सूत्र में आया होगा।
फिर स्वामीजी बोले-साधु को किंवाड़ बन्द नहीं करना चाहिये, एक घर से प्रतिदिन माहार नहीं लेना चाहिये। ___ तब वह बोला---यह बात आपने बिल्कुल ठीक कही । किंवाड बन्द कर साधु को किसकी सुरक्षा करनी है ? किंवाड़ बन्द करने वाला साधु ही नहीं होता।
तब स्वामीजी ने कहा-कुछ साधु किंवाड़ बन्द करते हैं, प्रतिदिन एक घर का माहार लेते हैं।
तब वह बोला-हां महाराज ! किंवाड बन्द करते हैं, प्रतिदिन एक घर का