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आहार लेते हैं तो कहीं सूत्र में आया होगा ।
तब स्वामीजी ने जान लिया कि यह समझने वाला नहीं है क्योंकि इसकी बुद्धि प्रखर नहीं है ।
भिक्खु दृष्टांत
१५७. गेहूं की दाल नहीं होती
स्वामीजी किसी से चर्चा कर रहे थे, तब उन्होंने देखा कि इसकी बुद्धि बिल्कुल कमजोर है । लोगों ने कहा- स्वामीजी ! आप इसे समझाएं ।
तब स्वामीजी बोले- मूंग, मोठ और चने की दाल हो सकती है, पर गेहूं की दाल नहीं हो सकती । इसी प्रकार जिसके कर्म का लेप कम होता है और जो बुद्धिमान होता है वह समझ सकता है, किन्तु बुद्धि से हीन आदमी नहीं समझ सकता । १५८. उतने कारीगर नहीं
किसी ने कहा- आप उद्यम करें तो चारों तरफ ऐसे सुलभबोधि जीव हैं जो समझ सकते हैं ।
तब स्वामीजी बोले - मकराणा के पत्थर में प्रतिमा होने की क्षमता तो है, पर हर पत्थर को प्रतिमा बनाने के लिए जितने चाहिए उतने कारीगर नहीं हैं। इसी प्रकार समझ सकने वाले तो बहुत हैं पर उतने समझाने वाले नहीं हैं ।
१५. केवली श्रुत-व्यतिरिक्त ही होते हैं
वेणीरामजी स्वामी ने स्वामीजी से कहा - हेमजी को अस्खलित और व्यवस्थित रूप से व्याख्यान कंठस्थ नहीं हैं। वे रचना करते जाते हैं और व्याख्यान देते जाते हैं । तब स्वामीजी बोले – केवली श्रुत-व्यतिरिक्त ही होते हैं । उनके श्रुत से कोई प्रयोजन नहीं होता ।
१६०. कौनसा खपरेल लाओगे
वेणीरामजी स्वामी अभी छोटी अवस्था में ही थे । तब उन्होंने स्वामीजी से कहा - हिंगुल से पात्र नहीं रंगने चाहिए ।
रंगना ।
तब स्वामीजी बोले- मेरे तो पात्र रंगे हुए ही हैं, तुम्हें शंका हो तो तुम मत
इधर पास में पीला और
तब वेणीरामजी स्वामी बोले- मेरा तो खपरेल से रंगने का भाव है । तब स्वामीजी बोले- तुम खपरेल लेने जाओगे, तब कच्चे रंग का खपरेल पड़ा है और आगे लाल और पक्के रंग का खपरेल पड़ा है । तुम्हारे अनुसार पहले पास में जो दिखाई दिया वही लेना चाहिए। और यदि अच्छा खपरेल खोजा जाए तो ध्यान तो अच्छे रंग का ही हुआ। वह कह कर स्वामीजी ने उन्हें समझाया । और वे समझ गए ।
१६१. दुरंगे क्यों रंगते हो ?
कोई कहता है - पात्रों को दो रंग में (लाल और काला) तब स्वामीजी बोले- उनमें कुंथुओं (सूक्ष्म जीवों) का जाता है। वे एक रंग से दूसरे रंग पर आते हैं तब सरलता
क्यों रंगते हैं ?
अच्छी तरह से पता लग से दिख जाते हैं। कोरा