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भिक्षु दृष्टांत १५०. वह ठीक ही है किसी ने कहा-सूत्रों में कहा है साधु को जीव बचाना चाहिये ।
तब स्वामीजी बोले- वह ठीक ही है। जीवों को वैसे ही रखना चाहिए जैसे वे हैं, किसी को दुःख नहीं देना चाहिए ।
१५१. ऐसे होते हैं अज्ञानी अन्य सम्प्रदाय के श्रावकों को पूरी पहचान नहीं, उस पर स्वामीजी ने दृष्टान्त दिया-कोई बहुरूपिया साधु का रूप बना कर आया। उसे पूछा-तुम किस सम्प्रदाय के हो?
तब वह बोला-मैं डूंगरनाथजी के सम्प्रदाय का हूं। तुम्हारा नाम क्या है ? उसने कहा-मेरा नाम पत्थरनाथ है। तुम क्या पढ़े हो ?
तब वह बोला-पढ़ा कुछ भी नहीं हूं, पर यह जानता हूं कि बाईस टोले अच्छे हैं और तेरापन्थी बुरे ।
'तब तुम महापुरुष हो' यह कह कर उन्होंने तीन प्रदक्षिणा से विधिपूर्वक उसे वन्दना की। ऐसे अज्ञानी हैं । वे न्याय और निर्णय करना नहीं जानते ।
. १५२. भगवती कौन सा अधम्मो मंगल हैं ? स्वामीजी भगवती का वाचन कर रहे थे। एक व्यक्ति ने आकर कहास्वामीजी ! 'धम्मो मंगल' कहो।
तब स्वामीजी बोले-भगवती सुनो। वह फिर बोले-स्वामीजी धम्मो मंगल सुनाओ।
तब स्वामीजी बोले -भगवती कौनसा 'अधम्मो मंगल है' यह 'धम्मो मंगल' ही है। गांव जाते समय शकुन लिया जाता है, गधे और तीतर को बुलवाया जाता है । वैसे ही 'धम्मो मंगल' सुनना चाहते हो तो बात अलग है और निर्जरा के लिए सुनना चाहते हो, वह दूसरी बात है।
१५३. गधे की बात क्यों करते हैं ? किसी ने पूछा-जंगल में कोई साधु थक गया। सहज-भाव से कोई बैलगाड़ी आ रही थी। उस बैलगाड़ी पर साधु को बिठा कर गांव में लाया गया, उससे क्या
हुमा ?
तब स्वामीजी बोले-बैलगाड़ी नहीं, किंतु सवारी के गधे आ रहे थे। उन पर बिठा कर साधु को गांव में लाया गया, तब उसको क्या हुआ ?
तब वह बोला-गधे की बात क्यों करते हैं ? तब स्वामीजी बोले-तुम बैलगाड़ी में बिठा कर लाने में धर्म कहते हो तो गधे