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दृष्टांत : ११
१२५ उठाए हुए, विहार करते हुए, "भीखणजी कहां है ? भीखणजी कहां है?" यह कहते हुए आए।
स्वामीजी ने कहा- 'मेरा नाम है भीखण।" तब वे बोले- "आपको देखने की मन में थी।" तब स्वामीजी ने कहा- "देखो।" तब वे बोले-'आपने सब बात अच्छी की, पर एक बात अच्छी नहीं की।" . स्वामीजी ने पूछा - "क्या ?" तब उन्होंने कहा---''हम बाईस संप्रदायों के साधु हैं, उन्हें आप असाधु बतलाते
तब स्वामीजी ने पूछा---''तुम किनके साधु हो?" तब उन्होंने कहा-"हम सामीदासजी के साधु हैं।"
तब स्वामीजी ने कहा- "तुम्हारे संप्रदाय में ऐसा लिखत (विधान) है कि इक्कीस संप्रदायों में से कोई साधु तम्हारे संप्रदाय में आए तो नई दीक्षा देकर उसे संप्रदाय में मिलाएं। ऐसा लिखत है, क्या तुम जानते हो?"
तब वे बोले -'हां ! हम जानते हैं।" तब स्वामीजी ने कहा- "इक्कीस संप्रदाय को तो तुम लोगों ने ही असाधु स्थापित कर दिया। गृहस्थ को दीक्षा देकर अपने में मिलाते हो और उन्हें भी दीक्षा देकर अपने में मिलाते हो। इस हिसाब से इक्कीस संप्रदायों को तुमने गृहस्थ के बराबर समझ लिया। इस दृष्टि में इक्कीस संप्रदायों को तुमने ही असाधु स्थापित कर दिया। एक तुम्हारा सम्प्रदाय बचा । भगवान ने कहा"जिसे दो उपवास का प्रायश्चित्त प्राप्त हो, उसे कोई तीन उपवास का प्रायश्चित्त दे, तो देने वाले को तीन उपवास का प्रायश्चित्त आए .' तुम उन्हें (इक्कीस संप्रदायों को) साधु मानते हो और फिर उन्हें नई दीक्षा देते हो, सो तुम्हारे हिसाब से तुम्हें नई दीक्षा लेनी होगी। इस हिसाब से तुम्हारा संप्रदाय भी असाधु ठहर जाता है ।" यह सुन वे बोले"भीखणजी ! आपकी बुद्धि प्रबल है।" यह कहकर जाने लगे।
__ स्वामीजी ने कहा- "यदि तुम यहां रहो, तो आज चर्चा करें।" तब वे बोले-- "हमारी यहां रहने की स्थिरता नहीं है ।" यह कहकर वे चलते बने ।
११. मान्यता और प्ररूपणा का भेद एक गांव में स्वामीजी ठहरे हुए थे। वहां अमरसिंहजी के दो साधु-ईसरदासजी और मोजीरामजी आए। वे जहां ठहरे वहां स्वामीजी गए और उनसे प्रश्न पूछा"किसी व्यक्ति ने अनुकम्पा ला भूख से पीड़ित आदमी को मूली दी। उसमें क्या
हुआ?"
जब वे बोले-"ऐसा प्रश्न, जो मिथ्यात्वी होता है, वही पूछता है।"
तब स्वामीजी बोले-"पूछने वालों ने तो पूछ लिया, पर उत्तर देने वाला उत्तर देने से मिथ्यात्वी बनता हो, तो उत्तर मत दो।"
तब वे बोले-"हम तो मूली में पाप बतलाते हैं।" तब स्वामीजी ने कहा- "मूली में पुण्य और पाप दोनों हैं। पर अनुकम्पा ला