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भिक्खु दृष्टांत
मूली खिलाने पर कुछ लोग 'मिश्र' कहते हैं।"
तब उन्होंने कहा ..."जो 'मिश्र' कहता है, वह पापी।" फिर पूछा-"कोई पाप कहता है ?" वे बोले ---"जो पाप कहता है, वह भी पापी ।" फिर पूछा- “कोई पुण्य कहता है ?" तब बोले-"जो पुण्य कहता है, वह भी पापी।" तब स्वामीजी गहरी विचारणा कर बोले-"कुछ लोग पुण्य मानते हैं।" तब वे बोले-"वही मानेगा, जो मन में जचेगा।"
तब स्वामीजी बोले-"तुम्हारी मान्यता पुण्य की है । तुम लोग पुण्य की प्ररूपणा नहीं करते, किन्तु उसे मानते हो।" इत्यादि बातें कर उन्हें निरुत्तर कर स्थान पर पधारे।
१२. स्वर्गगामी या नरकगामो पाली में एक व्यक्ति स्वामीजी से चर्चा करते समय अन्ट-सन्ट बोला । उसने कहा"तुम्हारे श्रावक ऐसे दुष्ट हैं कि किसी के गले में फांसी का फंदा नहीं निकालते ।" वह बहुत विपरीत बोलने लगा, तब स्वामी भीखणजी बोले-"तुम्हारा और हमारा मत कहो । समुच्चय में ही बात करो।"
तब कुछ पास आकर बोला-"क्या समच्चय में बात कहं ?" ___ तब स्वामीजी बोले - "एक आदमी ने वृक्ष से लटक कर फांसी ले लो । उस मार्ग से जाते हए दो व्यक्तियों ने उसे देखा-"एक फांसी के फंदे को खोलता है. वह कैसा और जो फांसी के फंदे को नहीं खोलता, वह कैसा ?"
तब वह बोला--"जो फांसी के फंदे को खोलता है, वह महान, उत्तम पुरुष है, मोक्षगामी, स्वर्गगामी और दयालु है ।" इस प्रकार उसके अनेक गुण बतलाए । “फांसी के फंदे को नहीं खोलने वाला महान् पापी, महान् दुष्ट और नरकगामी है ।"
तब स्वामीजी ने कहा---"तुम और तुम्हारे धर्मगुरु दोनों जा रहे हो तो उसके फांसी के फंदे को कौन खोलेगा ?"
तब वह बोला- "मैं खोलूंगा।" "तुम्हारे गुरु खोलेंगे या नहीं ?"
तब वह बोला-“वे क्यों खोलेंगे; वे तो साधु हैं ।" ___ तब स्वामीजी बोले-“मोक्षगामी और स्वर्गगामी तो तुम ठहरे और तुम्हारे हिसाब से नरकगामी तुम्हारे गुरु ठहरे।" तब वह अपने ही तर्क में उलझ गया और उत्तर देने में असमर्थ रहा ।
१३. मुझे तो अवगुण निकालने' ही हैं किसी ने कहा-"भीखणजी ! बाईस संप्रदाय वाले तुम्हारे अवगुण निकालते
तब स्वामीजी बोले- 'अवगुण निकालते हैं या भीतर डालते हैं ?" तब बह बोला-"निकालते हैं।"