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भिक्खु दृष्टांत वृक्ष की छाया के नीचे उन्होंने विश्राम किया। तब किसान बोले-"यहां मत जलाओ रे, मत जलामो । बच्चे और बच्चियां डरेंगे। -
तब रावजी के साथ वाले कर्मचारी बोले -"मत बोलो रे, मत बोलो । ये रावजी हैं रे, रावजी । तब किसान बोले-"बात डुब मई। रावजी मर गए? हमने तो सोचा-रावजी की मां मर गई है।" तब कर्मचारियों ने किसानों से कहा-"जयपुर, जोधपुर वालों के पास पालकी है। इसलिए रावजी के 'पालक' बनाया था, अतः रावजी यहाँ हवा खाने के लिए आए हैं।
तब किसान बोले- इसे 'डोल' (रथो या बैकुंठी) जैसा क्यों बनाया ?
स्वामीजी बोले-"जैसा सिरोही रावजी का पालका, वैसा ही इनके नए साधुपन का स्वीकार । किन्तु श्रद्धा मिथ्या है । ये जीव खिलाने में पुण्य मानते हैं, सावध दान में पुण्य मानते हैं, इसलिए इनमें सम्यक्त्व और चारित्र- दोनों में से एक भी
नहीं।"
८. जैसा संग, वैसा रंग गुमानजी के साधु दुर्गादासजी से भीखणजो स्वामी ने कहा- "हम आधाकर्मी (साधु-निमित्त कृत) स्थानक में दोष बतलाते, तब तुम मानते नहीं और अब उनसे (आचार्य जयमलजी से) अलग हो जाने के बाद तुम भी आधाकर्मी स्थानक का निषेध करने लग गए।"
तब दुर्गादासजी बोले-"रावण के सामन्त उसे बुरा जानते थे, फिर भी गोली राम की ओर ही दागते थे । वैसे ही हम उनके साथ थे, तब हम भी स्थानक का निषेध नहीं करते थे और आप स्थानक का निषेध करते, तब हम आपसे द्वेष करते थे।"
६. धीमे-धीमे दृढ़ होंगे गुमानजी के साधु पेमजी ने हेमराजजी स्वामी से कहा-"तीन तुम्बे अधिक थे, वे आज फोड़ डाले।" ___तब हेमराजजी स्वामी ने कहा-"उनसे अलग होकर नया साधुपन स्वीकार किए हुए तुमको बहुत दिन हो गए। फिर तीन तुम्बे अधिक थे, वे आज फोड़ डाले, उसका क्या कारण ?
तब पेमजी ने कहा-हम शिथिल हो गए थे, सो अब दृढ़ धीमे-धीमे होंगे।
फिर हेमराजजी स्वामी ने भीखणजी स्वामी से कहा-"महाराज ! आज पेमजी ने ऐसी बात कही- "हम शिथिल पड़ गए, सो अब दृढ़ धीमे-धीमे होंगे।"
तब स्वामीजी बोले--तुमने यों क्यों नहीं कहा-किसी ने आजीवन शीलवत स्वीकार किया। छह महीनों के बाद वह बोला-“एक स्त्री मैंने आज छोड़ी है।'' तब किसी ने कहा- "तुम्हें शील स्वीकार किए तो बहुत महीने हो चुके हैं ?" तब वह बोला-"शिथिल पड़े थे, अब दृढ़ धीमे-धीमे होंगे।"
१०. साधु-असाधु पादु के उपाश्रय में भीखणजी स्वामी और हेमराजजी स्वामी गोचरी के लिए जा रहे थे। इतने में सामीदासजी के दो साधु मलिन वस्त्र पहने, कंधों पर पुस्तकों का जोड़ा