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दृष्टांत : १८१-१८४ कह्यौ–'संवत अठारे तेपना पछै धर्म रौ उद्योत होसी', इण वचन रै लेखे तो तेपनां पहिली साध नहीं, इम संभवै ।
___जद स्वामीजी बोल्या इहां साध नहीं, इसौ तौ कह्यौ नहीं । सं०. १८५३ पछै धर्म रा घणा उपकार आसरी उद्योत कह्यौ छै। तेपना पहिला थोड़ी उद्योत छौ तेपना पछै घणौ उद्योत । इम न्याय बताय समझायो।
१८१. खूचणो काढ़े तो तेलो भारमलजी स्वामी बालक था जद स्वामीजी कह्यौ-गृहस्थ खूचणौ काढे तिसौ काम न करणौ । गृहस्थ खूचणौ काढे तौ तेला रो दंड।
जद भारमलजी स्वामी बोल्या-कोई झूठौई खूचणौ काढे तो ?
जद स्वामीजी कह्यौ --झूठौ खंचणौ काढे तो आगला पाप उदै आया। तौ पिण भारमलजी स्वामी बड़ा वनीत पिण था सौ वचन अंगीकार कर लीधौ । इसा उत्तम पुरुष खूचणी कढावै किण लेखै ।
१८२. नींद में हेठो पड़ जाऊं तो? बालपणे भारमलजी स्वामी नै आखी उत्तराधेन ऊभा-ऊभा चीतारणी इसी आज्ञा स्वामीजी दीधी।
जद भारमलजी स्वामी बोल्या स्वामीनाथ कदाचित नींद मैं हेठो पड़ जाऊं तौ ?
जद स्वामीजी पाछौ फरमायो-पूंज नै खूण ऊभा रहौ ।
इण रीते ऊभा आखी उत्तराधेन री सझाय अनेक बार कीधी। इसा वैरागी पुरुष ।
१८३. प्रकृति सुधारवा रौ उपाय
साध आयाँ री प्रकृती करड़ी देखता तो तिण री खोड़ खामी मेटवानें इम दष्टांत देता--कषाय रौ टूक, जाणै बासति रौ टूक, सर्पनी परै फं, इम कहि नै प्रकृती सुधारवा रो उपाय करता।
१८४. छेहड़े जाता मोरो मारू भेषधारी बखांण वांणी देव सूत्र सिद्धत वाच, छेहडै जीव खुवायां पुन मिश्र परूपै, सावद्य अनुकंपा मै धर्म कहै तिण ऊपर स्वामीजी दृष्टंत दीयोबायां रात्रि मै संसार लेख चोखा-चोखा गीत गावै अनै छैहड़े जातां मोर्यो मारू गावै । ज्यू भेषधारी पहिलो तौ बखाण मै अनेक बांता कहै, पिण छैहड़े सावद्यदान सावज्ज दया में पुण्य मिश्र परूपै ।