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भिक्खुट
पड़ सहित परणाय देस्यूं । म्हारा दौलतसिंह रौ सूंस है । जद हेमजी स्वामी जाब दीधा - परणावौ तौ गांम मै कुंवारा डावरा ई है | म्हारै तौ संस है । इम कही स्वामीजी कनै आय बैठा । स्वामीजी गांम में रहिवा री आज्ञा लेयने पंच पिण पाछा आया ।
• पर्छ तेरह थया
माघ सुदी १५ पछै हेमजी स्वामी रै छ काया हणवा रा त्याग हूंता सो न्यातिलां को - फागुण बिद दूज रै साहवे बहिन नै परणाय नै दिख्या जो । सो उणां कह्यो मान्यौ ।
पछे स्वामीजी नै आय पूछ्यौ ।
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जद स्वामीजी निषेध्या । रे भोळा ! अनर्थ करै है । एक दिन पिण न उलंघणौ । पछे पाछा आयनै जे बीज रै साहवै बहिन परणाय दिख्या लैणी sat कागद कीधी हूंतो सौ फाड़ न्हाख्यो, नै घरका ने कह्यौ - थे इसा दगा करौ | म्हारौ त्याग भंगावी ।
जद लोक बोल्या - भीखणजी समझाया दीसै है । पछे इकवीस दिन नोलाजीमी नै माघ सुदी १३ नै १८५३ गाम बारै, बड़ला रे नीच हजारू मनुष्य भेळा थया घणां ओछव मोच्छव सहित स्वामीजी रे हस्ते दिख्या लोधी ।
सर्व बारे साधता पछै तेरह थया । तठा पछै बधवौ कीधाधोतर थइ । बंक चलीया मै कह्यौ -सं० १८५३ पछै धर्म रौ घणौ उद्योत हुसी, ते बात आय मिली । दिख्या देई स्वामीजी विहार कीधौ । पछै घणौ उपकार थयौ ।
१८०. एक भोखणजी स्वामी इज है
कच्छ देश थी टीकम दोसी पाली में आयौ । अनेक बोलां री संका पड़ी मेवा ।
जद पाली में भेषधाऱ्यां रा श्रावकां कह्यौ - टोडरमलजी थांरी संका मेट देसी । थे थानक मैं चालौ । इम कही थानक मैं ले गया । टीकम दोसी टोडरमलजी सूं चरचा कीधी। टीकम दोसी रा प्रश्नां रा जाब आया नहीं ।
जद टीकम दोसी बोल्यो - यां प्रश्नां रा जाब दैणवाळा तौ एक भीखण जी स्वामी इज है और कोइ दिसै नहीं, इम कही ठिकाण आयौ ।
तलायक दिनां पछै स्वामीजी मेवाड़ सूं मारवाड़ पधार्या । सरीयारी होय नै गुणसठ वर्ष पाली चौमासौ कीधौ । टीकम दोसी मोकळा प्रश्न पूछया । ज्यांरा जाब स्वामीजी दीधा । टीकम दोसी बोल्यो - बंकचूलिया मै