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वरंगचरिउ 2. वरंगचरिउ की मूल कथा
प्रथम संधि-पंचपरमेष्ठी का मंगलाचरण में स्तवन करके सज्जन-दुर्जन के गुणों को कहकर पश्चात् वरांग की कथा का प्रारंभ होता है। विनीत देश में रम्या नदी के तट पर कंतपुर नामक नगर था। उसमें भोजवंश का राजा धर्मसेन राज्य करता था, उसकी गुणवती (गुणदेवी) नाम की सुन्दर और रूपवती पटरानी थी। समय पाकर उनका एक पुत्र हुआ, जिसका नाम वरांग रखा गया। जब वह बालक चन्द्रमा की कला की तरह वृद्धिंगत हो रहा था। उसी समय दूसरी पत्नी मृगसेना के यहां सुषेण नामक पुत्र का जन्म होता है। जब कुमार वरांग युवा हो गया तब उसका विवाह ललितपुर के राजा देवसेन की पुत्री सुनन्दा, साथ ही विंध्यपुर के राजा महेन्द्रदत्त की पुत्री अंगवती, सिंहपुर के राजा द्विषन्तप की पुत्री यशोमती, इष्टपुरी के राजा सनत्कुमार की पुत्री वसुन्धरा, मलयदेश के अधिपति मकरध्वज की पुत्री अनन्तसेना, चक्रपुर के राजा समुद्रदत्त की पुत्री प्रियदत्ता, गिरिव्रज नगर के राजा बाजायुध की पुत्री सुकेशी, श्री कौशलपुरी के राजा सुमित्रसिंह की पुत्री विश्वसेना, वरांगदेश के राजा विनयन्धर की पुत्री प्रियकारिणी और व्यापारी की पुत्री धनदत्ता के साथ होता है। वरांग इनके साथ सांसारिक सुख का उपभोग करता है। एक दिन अरिष्टनेमी (नेमीनाथ) के प्रधान गणधर वरदत्त कंतपुर में आये। राजा धर्मसेन मुनि वन्दना को गया। राजा के प्रश्न करने पर उन्होंने आचारादि, सम्यग्दर्शन की प्राथमिकता आदि का उपदेश दिया। वरांग के पूछने पर उन्होंने सम्यक्त्व और मिथ्यात्व का विवेचन किया। उपदेश से प्रभावित हो वरांग ने अणुव्रत धारण किये और उनकी भावनाओं का अभ्यास किया तथा राज्य संचालन और अस्त्र-शस्त्र के संचालन में दक्षता प्राप्त की। राजा धर्मसेन वरांग के श्रेष्ठ गुणों की प्रशंसा सुनकर प्रभावित हुआ और तीन सौ पुत्रों के रहते हुए वरांग को युवराज पद पर अभिषिक्त कर दिया। वरांग के युवराज पद पर आसीन होने पर उसकी सौतेली मां मृगसेना और सौतेला भाई सुषेण को ईर्ष्या हुई ओर मंत्री सुबुद्धि से मिलकर उन्होंने षड्यन्त्र किया। मन्त्री ने एक सुशिक्षित घोड़ा वरांग को दिया जो ऊपर से सीधा और साधारण दिखता था लेकिन अन्दर कुटिल था। वरांग के उस पर बैठते ही वह हवा से बातें करने लगा। वह नदी, सरोवर, वन और अटवी को पार करता हुआ आगे बढ़ता है और वरांग को कुएं में गिरा देता है। ___ वरांग संयोगवश कुएं से बाहर निकलता है और भूख-प्यास से पीड़ित हो आगे बढ़ने पर कहीं तो सिंह की भयंकर दहाड़ सुनाई देती है, कहीं किलकारी भयंकर शब्द सुनाई देते हैं, कहीं मदोन्मत्त हाथियों का समूह युद्ध करते हुए दिखाई देता है, कहीं वराह (जंगली सुअर) भिड़ते दिखाई देते हैं, कहीं सिंह अपनी क्रीड़ा में मस्त हैं और कहीं सांभर (राजस्थान का पशु) रीझता