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वरंगचरिउ
221 प्राप्त होती है। मोक्ष का ही अपर नाम पंचमगति है। पंचमहव्वय (पंचमहाव्रत) 4/22
मुनियों के 28 मूलगुणों में प्रथम ही पंच महाव्रत होते हैं, जो इस प्रकार हैं-1. अहिंसा महाव्रत, 2. सत्य महाव्रत, 3. अचौर्य महाव्रत, 4. ब्रह्मचर्य महाव्रत, 5. अपरिग्रह महाव्रत।
उक्त पांचों महाव्रतों के पालन के लिए हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह-इन पांचों पापों का पूरी तरह त्याग करने को पंचमहाव्रत कहते हैं। पंचसमिदि (पंचसमिति) 4/22
ईर्या, भाषा, एषणा, आदान-निक्षेपण और उत्सर्ग-ये पांच समितियां हैं, जिनका विवेचन इस प्रकार हैं
1. ईर्या समिति-प्रमादरहित चार हाथ जमीन देखकर चलना ईर्यासमिति है। नेत्रगोचर जीवों के समूह से बचकर गमन करने वाले मुनि के प्रथम ईर्यासमिति होती है। यह व्रतों में शुद्धता उत्पन्न करती है।
2. भाषा समिति-सदा कर्कश और कठोर वचन छोड़कर यत्नपूर्वक प्रवृत्ति करने वाले यति का धर्म कार्यों में बोलना भाषासमिति है।
3. एषणा समिति-शरीर की स्थिरता के लिए पिण्ड शुद्धिपूर्वक मुनि का आहार ग्रहण करना एषणा समिति है।
4. आदान निक्षेपण-देखकर योग्य वस्तु का रखना और उठाना आदान-निक्षेपण समिति है।
5. उत्सर्ग समिति-इसे प्रतिष्ठापन समिति भी कहते हैं। प्रासुक (जीव-जन्तु से रहित) भूमि पर मल-मूत्र छोड़ना उत्सर्ग समिति है। पंचासवदार (पंचास्रवद्वार) 4/22
शुभ और अशुभ कर्मों के आने के द्वार को आस्रव कहते हैं। आस्रव के पांच द्वार कहे गये हैं-मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग । पंडिय-मरणु (पंडित मरण) 4/23 ___ मरण-अपने परिणामों से प्राप्त हुई आयु का, इन्द्रियों का और मन, वचन, काय-इन तीनों बलों का कारण विशेष के मिलने पर नाश होना मरण कहलाता है। निर्मम, निरहंकार, निष्कषाय, जितेन्द्रिय, धीर, निदान-रहित, सम्यग्दर्शन सहित जीव मरते समय आराधक होता है, उसे ही पण्डित मरण कहते हैं। यह मरण मुनि का ही होता है। पडिमबिन्दु (प्रतिमा बिम्ब) 3/7
अनंत चतुष्टय सहित तीर्थंकर भगवान् की बाह्य एवं आभ्यन्तर परिग्रह से रहित शरीर वाली