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________________ 206 वरंगचरिउ णउ गिण्हहि जिणदिक्ख परिग्गहु पई विणु हउं किं रहमि परिग्गहु । ताय वयण णिसुणिवि पुणु वुच्चइ देव मज्झु महि रज्जु ण रुच्चइ । तहि अवसरि पिय मायक्खमाविवि पुणु सयलु वि वंधव खम भाविवि। धरवइ रज्जु देवि णियपुत्तहो जुण्णतिणुव्व रज्जु परिचत्तहो। गहिय दिक्ख वरदत्तु णवेप्पिणु' वत्थाहरणइ सयल चएप्पिणु। सायरविद्धि" पुणु वि भवसंकिउ मंतिय सहु जिण दिक्खालंकिउ। णिव गेहिणि णियचित्ति विरत्ती लइय दिक्ख संजय गुणपत्ती। णिय गुरु सीसु वरंगु वि जायउ जिण तउ करइ तिसुद्ध णिरायउ। तिणु-कंचणु समभाउ वि मण्णइ वरइंदिय सुहु मुणि अवगण्णइ। सत्तु-मित्तु मणि सरिसउ भावइ दुद्धरु तउ करेवि तणु तावइ। घत्ता- गिरसिहरहो अच्छइ, णिद्दण गच्छइ, गिंभयालि इम तउ करइ। तरुतलि दिण गम्मइ, हरिरुह हम्मइ, वरसालइ जोउ वि धरइ ।।२१।। 22 सीयालइ चउपहि देइ जोगु किवि रहइ भयावण महिमसाणि परमप्पउ कावइ' सो जि इक्कु मुणि तिण्णिवि सल्लह मलिउ माणु तिरयण आहूसण धरिय जेण तव दड्डिय तुरिय कसाय कट्ठ णिरु पंचमहव्वय भारु लिभु वरपंचसमिदि पालणह धीरु छज्जीव दयावरु विमलबुद्धि । अट्ठवि मयतरु तवसिहि जालए दहविहु' धम्म कयावि ण छंडइ पडिमइ एयारह गुण अक्खइ तेरह विहु चारित्तु वि पालइ णउ धरइ कयावि ण हरिस सोउ। पारणउ करइ मासावसाणी। दो आसावंधण हय गुरुक्कु । तिण्णिवि गारवतमु हणण भाणु। दंडिय तिण्णिवि मणवयतणेण। चउगइ गमणु वि रुंधिउ अणि?' । पंचासवदारह वज्ज दिद्ध। पंचमगइ गमु वंछइ सुवीरु। सत्त वि भयवज्जिउ किय तिसुद्धि । णव विहु वंभचेरु जो पालइ। एयारह गुणे अप्पउ मंडई। वारहविहु तव रसु जो भक्खइ। अप्पउ झावइ चिरमलु जालइ । 22. 3. A,K, जिण्ण° 4. A,K, N, णवेपिणु 5. A,K,N, चएपिणु 6. K, ° विधि। 1. N, वकावइ 2. K, तिण्णिविं 3. K, सल्लहं 4. N, अणि8 5. A, K, N, पंचासवदारह 6. A, K,N, पालणहं 7. K, विहू 8. A,K,N, एयारहे 9. A,K,N, मंडए 10. N, तेरहं
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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