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वरंगचरिउ
165 खंडयं-इस अवसर पर राजा ने मंत्रियों को बुलाकर कहा-वह कीजिये, जिससे परलोक नष्ट न हो।
12. मंत्रियों की मंत्रणा ___ मंत्री कहता है कि हाथी को अर्पित कर दिया जाये, और भी धन मांगता है तो उसको भी दिया जाये। दूसरा कहता है-यह नहीं हो सकता है, इस अवसर पर हाथी नहीं दीजिए। श्रेष्ठ हाथी के कारण कुल की उन्नति है। वह उस दिन हमें नहीं देना है, क्या दिया जाये? क्या हाथी को अर्पित किया जाये? कोई भी दूसरा कारण शीघ्र ही कीजिये।
अन्य साकेत का राजा कहता है कि देवसेन मनुष्यों में प्रधान हैं। उसे अपने सहायक (सेवक) सेना को आज्ञा देना चाहिए। देश, कोष (खजाना), शक्ति और लक्ष्मी उसकी सहायता करती है, वह दुरूह शत्रुबल को युद्ध क्षेत्र में जीतेगा, उसके समान कोई दूसरा युद्ध में धुरंधर नहीं है।
कोई अन्य कहता है कि रण में जयश्री पायेगा, वह हमारे बल से शीघ्र ही ऐसा भविष्य होगा। अपने पौरुष बल से पृथ्वी को ग्रहण करके एवं हनन करके जय की दुंदुभि बजाकर राज्य करेंगे तो नरपति (राजन) पीछे क्या करना चाहिए जो बलवान होगा, वही नृप महीपति बनेगा। एक बात मैं सुन्दर (वरांग) के बारे में कहता हूँ, वह वणिपति है और घर में उसका नाम वरांग
हे देव! वह भद्र पुरुष है, शत्रु रूपी पर्वत के लिए वह बिजली की तरह योद्धा है। जब वह रास्ते में आ रहा था तब उसने बारह हजार वनचर समूहबल का नाश किया था। सुभट के बारे में क्या नहीं जानते हो, वह श्रेष्ठता पूर्वक तुम्हारी सहायता करेगा।
घत्ता-परन्तु उसे कोई भी नर नहीं जानता है कि वह वन में रहने वाला है अथवा वह किसी राजा का पुत्र है। वह उत्कृष्ट (दुर्द्धर) बल सहित है ऐसा जानना चाहिए, शत्रुओं को रण में रुला देगा। ___ खंडक-उत्तमपुर नगर में घोषणा कीजिए, पताका और रण की घोषणा कीजिए। सुभट (वीर) के व्यूह को देख लीजिए और एक बार युद्ध भूमि में आने दीजिए।