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वरंगचरिउ
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सुषेण को युवराज पद
वहां नरपति चैत्यालय की वंदना करता है । पुत्र, कामिनी एवं देवी भी श्रेष्ठ शिक्षा को धारण करती है। वहां चैत्यालय में जिनेन्द्रदेव का अभिषेक करके जिनेन्द्रदेव की पूजा करते हैं। विधाता के द्वारा विधित (भाग्य) के साथ उपर्युक्त कार्यों को दिन-दिनों तक करते रहना चाहिए, देखते-देखते कर्म फलभाव से युक्त होता है । वरांग कुमार के रखे हुए आसन पर सुषेण आसीन होता है, उसने विधि के विधान को अपने पद से जड़ से फेंक करके, जंगल में डालकर, उसको अन्य देश में भेजा, युवराज पद पर सुषेण पुत्र स्थापित हुआ । विधि के विधान के सदृश कोई दूसरा धूर्त नहीं है।
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इस प्रकार मथुरापुरी का राजा इन्द्रसेन था और उसका पुत्र उपेन्द्रसेन भी विद्यमान था । अपने सप्तअंग रूप (राजा, मंत्री, कोश- भण्डार, देश, किला, मित्र तथा सैन्य ) राज्य का परिपालन किया करता था। शत्रु एवं महीधरों के सिर जिसके सामने झुकते हैं, वह इन्द्र के प्रीत्यर्थ एक यज्ञ का आयोजन करता है। जब वह राजा सभा के मध्य आसन ( सिंहासन) पर बैठता है तो मानो विष्णु के समान प्रतीत होता है। कुल-कमल-सूर्यरूप राजा मैत्री से हाथी के प्रमाण की बात कहता
है ।
ललितपुर नगरी का राजा देवसेन था, जिसने अपने बल से शत्रुराजा और शत्रु सैन्य को नष्ट किया था, उसका महल ( धरि ) पर्वत के समान ऊँचा विद्यमान था, जो हाथी के मद (दाणु) के समान गुरुता रखते हैं, अपने बल से वृक्ष को नष्ट करने में समर्थवान् है, श्रेष्ठ हाथियों के तेज
जो शोभित है। उनके पास एक हाथी था, वह श्रेष्ठ हाथी मानो सुरेन्द्र का ऐरावत हो, मानो देवसेन श्रेष्ठ हाथी सहित श्रेष्ठ महीपतियों में इन्द्रतुल्य था । इन्द्रसेन कहता है - वह श्रेष्ठ हाथी शीघ्र ही छल से मांगकर या अपने बल से ग्रहण किया जायेगा । इन्द्रसेन एक दूत देवसेन के पास भेजता है और वह दूत देवसेन के समक्ष अपने राजा के प्रस्ताव को रखता है। इस प्रकार के वचनों को सुनकर राजा देवसेन कहता है- कौन भाग्यहीन इस प्रस्ताव को स्वीकृत करेगा। अतः मेरे द्वारा यह प्रस्ताव किया जाता है कि अपने बल से लेशमात्र भी श्रेष्ठ हाथी को नहीं दिया जायेगा और अन्य भी लक्ष्मी का दंड मागूंगा। इस प्रकार के वचनों को सुनकर समर्थशाली वीर ने कहा-राजन् यह तुमने अच्छा नहीं किया। हाथी को माँगकर लाने के लिए प्रथम तो उसने एक दूत भेजा था । यदि (हाथी) अर्पित करते हो तो दुःखादि से रहित शान्ति होगी, नहीं संग्राम पर नियमन करते हुए उपस्थित हो ।