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वरंगचरिउ
_151 पाण्डुपुत्र (पाण्डव) जो अतिबलवान थे, फिर वे सभी यमराज के मुँह में गये। यद्यपि जो एक छत्र (शासन) पृथ्वी पर भोग किया करता है तो भी यमराज उसके शरीर को नष्ट करता है। अपने-अपने सुख की सभी इच्छा करते हैं, वह सब कुछ बिना धर्म के नहीं पाया जा सकता है। जब तक इस संसार में जीव को मरण का भय रहता है, तब तक श्रेष्ठ जीव भी बंधन मुक्त नहीं हो पाता है। अथवा हे नृप! पाताल लोक में भवन का निर्माण किया जाये तो भी क्या कोई जीव की रक्षा कर सकता है? यदि देवराज इन्द्र (सुरनाथ) के पास शरण के लिए जाया जाये तो भी जीव की मरण से रक्षा नहीं कर सकता है। यदि कठोर पिंजड़े में प्रवेश करते हो तो काल (मृत्यु) के बिना मुक्ति नहीं हो सकती है। यदि ऐसे स्थान पर जहाँ जाना कठिन हो, दुर्गम समुद्र में निवास करो तो वहां भी मृत्यु का पासु (बंधन) आता है अथवा प्रचण्ड भोजराज हुए लेकिन क्या आयु के दंड से रक्षा कर पाये अर्थात् नहीं कर पाये।
घत्ता-इस प्रकार नृपति धर्मसेन जानकर कुमार वरांग का शोक मत करो। मन में सम्यकदर्शन रूप रत्नत्रय का ध्यान करो, जो संसार से तारने वाला है।
खंडक-इस प्रकार के वचन मन में मानकर, शोक की भी अवमानना करता है। पुनः राजा भलीभांति विद्यमान होता है और पूजा के योग्य पूज्य को अर्पण करता है।
5. माता-गुणदेवी का पुत्र विरह श्रेष्ठ घोड़ा पुत्र (वरांग) को लेकर जंगल में गया, गुणदेवी के द्वारा इस प्रकार के वचनों को सुनकर पुत्र-वियोग के अतिशोक से टूट गई। मन में हाय-हाय करके दूनी टूट गई। हाय! कोई विधि है? जो मरे हुए गुणवान पुत्र को जीवित कर दे, कोई भी नहीं जानता है।
हाय! मैं मिलन के लिए तुम्हें कहां प्राप्त करूं? तुम्हारे वियोग से मेरा मन अग्नि जैसा तप्त होता है। हाय! तुम्हारे बिना प्रिय घर भी वन के सदृश दिखाई देता है, यदि तुम जंगल में गये तो मेरा परिहास होता है। नेत्रों से आंसुओं का जल निकल पड़ा है मानो अकाल में ही मूसलाधार वर्षा से नदी बह रही है। ह्यय! तुम्हारे बिना मैं बांझ के समान हूँ। हाय! तुम्हारे बिना मैं महारानी नहीं हूँ। खाना, पीना एवं पान का सेवन तथा अंग स्नान का लेपन, फिर रतिसुख का सेवन आदि तुम्हारे बिना जलन के समान भासित होते हैं। तुम्हारे बिना रतन भी बेढुक जैसा भासित होता है। कांटे आदि से जैसे अटकाव होकर मन त्रसित होता है। तुम्हारे बिना चमर की वायु वध जैसा करती है मानो एक साथ अनेक श्रेष्ठ तलवार से शरीर को भयभीत किया गया हो। तुम्हारे बिना घर सूना है एवं नगर की नौका को चलाने वाले उपकरण विशेष के अभाव में