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वरंगचरिउ
149 पद) को नहीं जानता है, शोक में हिताहित को नहीं जानता है, शोकवाला व्यक्ति लोक में तिरस्कृत होता है, शोक से यशकीर्ति मैली हो जाती है, शोक से व्यक्ति अपने आपको क्षीण करता है, जिनशासन में शोक भी तिरस्कृत किया गया है।
राजा ने कहा - हम सबके लिए क्या करना चाहिए? शोक करते हुए कुछ भी लाभ नहीं है, भव्यजन की तरह स्वभाव का चिन्तन करना चाहिए। विधि के विवाद को उत्कृष्ट आदेश देता है। सभी लोग यमपुरी जायेंगे, क्योंकि मंत्र औषधि आदि कोई भी नहीं बचा सकता है। जब तक बंधा हुआ आयुष्यकर्म है, तब ही भोग करते हुए जीवन है। मूर्ख मन में अत्यधिक आकुल-व्याकुल होता है और शोक में रत होकर हृदय और सिर को ताड़ित करता है। श्रेष्ठ ज्ञानी के लिए शोक छोड़ना चाहिए और पुनः इसकी उत्पत्ति न हो ऐसा अपने आपको मंडित करना चाहिए। अपने मन में धर्म, विवेक और ज्ञान का ध्यान करो, जिनेन्द्र की वाणी को अपने मन में लाओ, तत्त्वों पर श्रद्धान करते हुए, पंच नमस्कार मंत्र का स्मरण करते हुए जो प्राणी जितने दिन जीवित रहता है फिर वह यमपुरी शुभभाव पूर्वक प्रस्थान करता है।
घत्ता-अर्द्धवर्ष (छह मास) तक अपने मृतक भाई श्रीकृष्ण को कंधे पर चढ़ाकर भ्रमण करते रहे, उन बलभद्र (बलदेव) ने क्या पाया, अतिशोकातुर हुए जो सभी को ज्ञात है।
खंडक अथवा मृत्यु सुन्दर नहीं है और यदि जीवित हुआ, तो वन में प्रद्युम्न की तरह भूताविष्ठ होता हुआ गुफाओं की ओर प्रस्थान करता है।
4. संसार की असारता. पूर्वार्जित कर्मविपाक के अनुसार प्राणी (देहु) सुख-दुःख को प्राप्त किया करता है। क्यों? स्वयं हर्ष विषाद किया करते हैं। विधि के सदृश ही जीव को संसार में गति होती है। हम सबकी रक्षा कौन करे? समय आने पर शरीर कृश और राख होगा।
पूर्वकाल में यह पृथ्वी किसने नहीं भोगी अर्थात् बहुत से राजा हुए और अपने समय आने पर काल कवलित हुए। कहीं-कहीं प्रतिनारायण रावण जो अतिप्रचंड था, जहाँ उसने श्रेष्ठ शत्रुबल को खंड-खंड किया। जो विद्वान् की पंक्ति में था, वह भी धर्मराज के द्वारा आयु के अंत में सेवित किया गया, जो लाखों का घात करता है पुनः स्वयं मृत्यु को प्राप्त करता है। क्या कोई भी अन्य पुरुष बचता है।
चौदह कुलकर, पुनः चक्रवर्ती, पृथ्वी का भोग करके अनाथ हुए। नौ नारायण, नौ प्रतिनारायण और नौ बलभद्र, चौबीस कामदेव, समुद्रविजय आदि दस यादववंशी राजा एवं