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वरंगचरिउ
117 को अपनाए रखता है।
इस प्रकार चिंतन कर दो बार अनशन किया, प्रसिद्ध णमोकार मंत्र का स्मरण करता है। पुनः किसी तरह अंधकार का नाश होता है और उदयाचल में स्थित सूर्य उदित होता है मानो श्रेष्ठज्ञान (केवलज्ञान) उदित हुआ हो। तालाबों में कमल-समूह विकसित होता है, आकाश में पक्षियों का समूह दौड़ा (उड़ा) करता है।
घत्ता-श्रेष्ठ दिशाएँ रमणीक हैं, वृक्षों से आच्छादित हैं, एक विशाल सरोवर है। वहां एक हाथी प्राप्त किया, मानो वह पर्वत का विदारण करने वाला हो। वह रतन की तरह उज्ज्वल सांवला था।
22. भविष्यवाणी __प्रचंड और ऊँचे भयानक भद्र-शब्द से वरांग के पुण्य को सुनाया जाता है। सिंध प्रदेश में जहां सिंह क्रोध पूर्वक स्वयं के तीक्ष्ण नखों का अग्रभाग मांस के भोजन से लिप्त था। पुनः जहां अपने आप मिले हुए मृगों को सिंह दांतों से चूर कर देता है। धर्म का प्रताप अच्छे से देखो-देखो, गजेन्द्र (श्रेष्ठी हाथी) के द्वारा श्रावकराज कुमार वरांग के बारे में विचार किया जाता है। वह श्रेष्ठ हाथी धर्म के कारण आगे मनुष्य होता है, जिसके विचारों में कोई-न-कोई शत्रु हो सकता है। वरांग भी विचार करता है कि मैं कृतार्थ हूँ, श्रेष्ठ हाथी ने मेरी यह दशा बदल दी। जंगल में रहते हुए आश्चर्य से देखा कि गजेन्द्र ने अनिष्ट सिंह का निवारण कर दिया। वरांग विचार करता है-यह हाथी नहीं हो सकता, यह तो मेरे पुण्य का योग लौटा है।
आगे शब्द गुंजायमान होते हैं-विजयश्री होने पर राजा रमणीय वस्त्र देगा, सुनंदा स्त्री और स्वर्ण की प्राप्ति होगी, सम्यक् यौवनरूप, स्वर्ण, सम्यक् अंग, मुनिराज के साथ सुबंधव मिलेंगे, अच्छे वस्त्र, अच्छा भोजन, देश, राजा, सूर्य, धनवान, धनपति, पवित्रता इत्यादि सभी पदार्थ की प्राप्ति होगी, अन्य भी सुकीर्ति की सिद्धि होगी। इस प्रकार विचार करके धर्म रीति पूर्वक करना चाहिए और जिनेन्द्र देव के लिए सद्बुद्धि पूर्वक अर्पित होना चाहिए।
घत्ता-इस प्रकार व्रतों का पालन करता हूँ, सम्यक् लक्षण से युक्त श्रेष्ठ सम्यक्त्व का पद वहन करता हूँ। कर्म को जलाकर (नष्ट कर) शिवपुरी (मोक्ष) प्राप्त करूंगा, स्वयं तेजपाल भी मोक्ष प्राप्त करेगा। ____ मुनि विशालकीर्ति (गुरु) की कृपा से पण्डित तेजपाल विरचित इस वरांग चरित में वरांगप्रवेश-नाम की प्रथम संधि समाप्त हुई।।संधि-1।।