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स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
परिशिष्ट-2
निद्रा, प्रचला, चक्षुदर्शनावरणीय, अचक्षुदर्शनावरणीय, अवधि-दर्शनावरणीय और केवल-दर्शनावरणीय।
. -जै. सि., पृ. 100 देवसेन आचार्य- माथुर संघ की गुर्वावली के अनुसार आप भी विमलगणी के शिष्य तथा अमितगति प्रथम के पुत्र थे। आपने प्राकृत व संस्कृत भाषाओं में अनेक ग्रन्थ लिखे हैं; यथा- दर्शन-सार (प्रा.) भाव-संग्रह (प्रा.) आराधना-सार (प्रा.) तत्त्व-सार (प्रा) ज्ञान-सार (प्रा.), नय-चक्र (प्रा.) आलाप-पद्धति (सं.) धर्म-संग्रह (सं. व प्रा)। आपका समय ई. 893-943 माना जाता
है।
-जै.सि. को., द्वि. भा., पृ. 449 द्वेष- 1. अनिष्ट विषयों में अप्रीति रखना भी मोह का ही एक भेद है। उसे द्वेष कहते हैं। 2. असह्य-जनों में तथा असह्य-पदार्थों के समूह में बैर के परिणाम रखना द्वेष कहलाता है। नाम-दोष, स्थापना-दोष, द्रव्य-दोष और भावदोष -इसप्रकार द्वेष का निक्षेप करना चाहिए। क्रोध, मान, अरति, शोक, भय व जुगुप्सा -ये छह कषाय द्वेष-रूप हैं।
-जै. सि. को., द्वि.भा., पृ. 461-462 द्रव्य- गुण और पर्याय के समूह को द्रव्य कहते हैं; या जो उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त है, उसे द्रव्य कहते हैं। द्रव्य छह हैं- जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल।
-जै. द. पा. को., पृ. 124 द्रव्य-कर्म- जीव के शुभाशुभ भावों के निमित्त
से बंधने वाले सूक्ष्म पुदगल-स्कन्धों को द्रव्य-कर्म कहते हैं। ये आठ प्रकार के हैंज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय ।
-जै.द. पा. को., पृ. 125 द्रव्य-मोक्ष- सम्पूर्ण कर्मों का आत्मा से अलग से नाता मोक्ष अर्थात् द्रव्य-मोक्ष है।
-जै.सि. को., भा. 2, पृ. 334 द्रव्यत्व- जिसके द्वारा द्रव्य का द्रव्य-पना अर्थात् एक पर्याय से दूसरी पर्याय रूप परिणमन निरंतर बना रहता है, वह द्रव्यत्व गुण है।
-जै.द. पा. को., पृ. 125 द्रव्य-संग्रह- आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव (ई. शती 11 का पूर्वार्द्ध) द्वारा रचित प्राकृत-गाथा-बद्ध ग्रन्थ है। केवल 58 गाथाओं द्वारा षट् द्रव्य व सप्त तत्त्वों का सार-गर्भित प्ररूपण है। इस पर निम्न टीकाएँ रची गईं- 1. आ. ब्रह्मदेव कृत संस्कृत-टीका, 2. पं. जयचन्द्र छाबड़ा कृत भाषा-टीका।
__-जै. सि. को., भा. 2, पृ. 460 | द्रव्य-स्वभाव-प्रकाश नय-चक्र- नय-चक्र नाम के कई ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है, सभी नय व प्रमाण के विषय का निरूपण करते हैं। प्रथम नय-चक्र आ. मल्लवादी नं. 1 (ई. 357) द्वारा संस्कृत-छन्दों में रचा गया था, पर अब वह उपलब्ध नहीं है। द्वितीय नय-चक्र आ. देवसेन (ई. 893-943) द्वारा रचा गया। इसमें कुल 423 गाथाएँ हैं।
-जै.सि. को., भा. 2, पृ. 569 द्रव्यार्थिक-नय- जो पर्याय को गौण करके द्रव्य को मुख्य रूप से अनुभव करावे, वह