________________
श्लो. : 8
स्वरूप-संबोधन - परिशीलन
सिद्धि होगी, परन्तु तत्त्व पर विपर्यास करने वाला घोर त्यागी, तपस्वी, ब्रह्मचारी का कर्म-मोक्ष तो दूर की बात है, वह तो मिथ्यात्व से भी न छूट पाएगा ।
सर्वप्रथम आत्मा की मिथ्यात्व से मुक्ति हो, – ऐसा पुरुषार्थ होना चाहिए, लोक में जीव-द्रव्य का प्रबल शत्रु मिथ्यात्व है, जो कि अनन्तानुबंधी कषाय का सहचर है, तत्त्वार्थ-श्रद्धान-रूपी शिखर से पतित करने वाला मिथ्यात्व है, तथा सम्यग्दर्शन-रूपी परम रत्न के तस्कर तो सोलह भेदों में पहले चार कषाय ही हैं; कहा भी हैतत्त्वार्थश्रद्धाने निर्युक्तं प्रथममेव मिथ्यात्वम् । सम्यग्दर्शनचौराः प्रथमकषायाश्च चत्वारः ।।
- पुरुषार्थसिद्धयुपाय, श्लो. 24 अर्थात् पहले ही तत्त्व के अर्थ के अश्रद्धान में जिसे संयुक्त किया है, ऐसे सम्यग्दर्शन के चोर, चार प्रथम कषाय अर्थात् अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ आदि हैं। ज्ञानियो! सर्वथा मिथ्यात्व को अकिञ्चित्-कर तो नहीं कहा जा सकता । बन्ध के प्रत्ययों में यह मिथ्यात्व पहला ही प्रत्यय है। यह दर्शन - मोहनीय द्विमुखी सर्प है, जो उभय- मुख से काटता है, सम्यक्त्व का भी घात करता है तथा चारित्र - गुण का भी घात करता है; इसलिए मुमुक्षुओ! सर्वप्रथम मिथ्यात्व से आत्म-रक्षा करना, प्रथम सम्यक्त्व के कवच से शत्रु पकड़ जाए, फिर अव्रती को प्रमाद, कषाय, योग इन शत्रुओं को नष्ट करने का सम्यक् पुरुषार्थ करना चाहिए। साथ में यह भी ध्यान रखना- मिथ्यात्व स्वयं के भाव - कषाय हैं, सर्वप्रथम अपना पुरुषार्थ इसके क्षीण करने में लगाकर सम्यक्त्व का वरण करो, सम्यक्त्व में संतुष्ट नहीं हो जाना, चारित्रका तीव्र पुरुषार्थ करना अति अनिवार्य है, बिना चारित्र के मात्र सम्यग्दर्शन-रूप ज्ञान-शब्द-मात्र ही तीन काल में भी निर्वाण नहीं दिला पाएगा। यह बात सम्यक् है कि चतुर्थ गुणस्थान में देश- जिन-संज्ञा है, सम्यक्त्वाचरण चारित्र है, परन्तु वह चारित्र साक्षात् साधकतम नहीं है, उपचार से मोक्षमार्गी - अवश्य है, परन्तु ज्ञानी- सत्यार्थ-सिद्धान्त में भाषा में देखा जाय, तो जहाँ सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र तीनों की अभिन्नता-रूप युगपद् अवस्था होगी, वहीं से निश्चय - व्यवहार मोक्ष मार्ग प्रतिफलित होता है।
/ 83
ज्ञानियो! व्यर्थ के क्लेश को प्राप्त नहीं होना चाहिए, गुणस्थान क्रम से आगम-वचनों के अनुसार प्रवृत्ति करो, जिस गुणस्थान की जैसी - भूमिका है, वैसा ही कथन करना चाहिए तथा अपना पुरुषार्थ तदनुसार करो। शब्द - जाल से पेट नहीं भरता, मोक्ष-मार्ग कहाँ बनेगा ?