________________
84/
स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
श्लो. : 8
- सर्वप्रथम मेरा सभी वक्ताओं को संकेत है कि स्व-पर हित का इच्छुक होना चाहिए, किसी भी संस्था विशेष से बँधकर नहीं बल्कि सीधे आगम-ग्रंथों के मूल-पाठ से जुड़कर स्वाध्याय में जुटना चाहिए, जिससे स्वावलम्बीपना आएगा एवं निडरता भी रहेगी, अपनी सत्यार्थ बात को कहने में किसी का दबाव भी नहीं रहेगा कि संस्था से निकाल दिया जाऊँगा। ज्ञानी! पुद्गल के टुकड़ों के पीछे भगवद्-वाणी के विपरीत कहने में तेरा मन कैसे जाता है?... थोड़ा शान्त-भाव से चिन्तवन करके तो देख..... रोटी क्या इतनी प्रिय है, जिसके पीछे जिनवाणी को भी सद्प में कहने में लाचार है। ऐसी रोटी से तो णमोकार जपते-जपते समाधि-लेना श्रेष्ठ है। मृत्यु एक बार हो जाएगी, पर मिथ्यात्व का पोषण तो नहीं होगा। मिथ्यात्व की पुष्टि से पेट भर भी गया, तो क्या नरकादि गतियों का पेट खाली रहेगा? .......इस बात का ध्यान रखा जाए। मैं तो करुणा-बुद्धि से मात्र समझा रहा हूँ; शेष तो वही होता है, जैसी जिनकी भवितव्यता होती है। जिसकी होनहार अशुभ ही होगी, वे इस उपदेश को स्वीकार नहीं कर पाएँगे; पर जिनकी होनहार शुभ है, वे शीघ्र तन्मार्ग में गमन करना प्रारंभ कर देंगे, अतः तत्त्व-ज्ञानियो! सत् को सत्, असत् को असत् कहना सीखो। वीतराग नमोऽस्तु-शासन को जयवन्त करो और अपनी आत्मा का कल्याण करो। वस्तु-स्वरूप का प्रतिपादन जैसे का तैसा करना सम्यग्दृष्टि-जीव का व्यसन होता है। विधि-मुख एकान्त से या निषेध-मुख एकान्त से द्रव्य का प्रतिपादन कभी एक रूप से ही पूरी तरह नहीं हो सकता। न सर्वथा सद्रूप ही है, न सर्वथा असद्रूप ही, यानी न सर्वथा विधि-रूप, न सर्वथा निषेध-रूप; आत्मादि-द्रव्य तो विधि-निषेधात्मक हैं। __ज्ञानियो! यहाँ पर आत्मा को विषय बनाएँ, विचार करें कि आत्मा सत् ही है, यदि ऐसा मानते हैं, तो वह सर्वात्मक एवं मर्यादा-विहीन हो जाएगा। सभी द्रव्यों के सत्पने के प्रसंग में आत्म-द्रव्य सभी में घटित होने लगेगा, संकर नाम का दोष खड़ा हो जाएगा, साथ ही छ: द्रव्यों की सत्ता समाप्त हो जावेगी। लोक में मात्र एक द्रव्य का प्रसंग रह जाएगा, जड़-धर्मी चैतन्य हो जाएगा, अत्यन्ताभाव का अभाव हो जाएगा, तथा अनवस्था-दोष का प्रसंग आएगा। व्यवहार में जब कोई जीव गर्म दुग्ध पियेगा, तब वह जल रहा होगा, क्योंकि अग्नि भी उस समय उस जीव में विद्यमान महसूस होगी। ज्ञानियो! भिन्न-भिन्न अनुभूति का अभाव हो जाएगा। दुग्ध दृष्टान्त का तात्पर्य समझना, जब पर-भाव-निरपेक्ष आत्मा सद्-रूप ही है, तब सम्पूर्ण पदार्थ