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श्लो. : 6
स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
एकानेकविकल्पादाव्रत्तरताऽपि योजयेत् । प्रक्रियां भंङ्गिनीमेनां नयैर्नयविशारदः।।
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- आप्तमीमांसा, श्लो. 23
प्रमाण के द्वारा जाने गये पदार्थ के एक देश को जानना नय है, उसमें जो कुशल हैं, वे नय- विशारद हैं। नयों से अपने कारणों से विशेषणत्वादि के कारण अनेक भंगों वाली इस प्रक्रिया को इससे आगे भी लगाएँ ।
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कहाँ एक-अनेक आदि विकल्पों में कैसे ? ... कथञ्चित् एक है, ......कथञ्चित् अनेक है। कथञ्चित् एक भी है, अनेक भी है । कथञ्चित् अवक्तव्य है, कथञ्चित् एक और अवक्तव्य है, कथञ्चित् नेक और अवक्तव्य है, कथञ्चित् एक, अनेक और अवक्तव्य है, इसीप्रकार द्वैत-अद्वैत आदि भी प्रयोग करना चाहिए । सर्वथा एक रूपता यानी अद्वैतपन में ज्ञानियो! अनेक दोष खड़े हो जाते हैं। यह अद्वैत एकान्त, असद्ग्रह, दुराग्रह है। इसे स्वीकारने पर प्रत्यक्ष प्रमाण से ज्ञात अनेक भेद तथा लोक में प्रसिद्ध भेदों का अभाव हो जाएगा। प्रत्येक वादी से प्रश्न खड़ा है, जो वक्ता बोलता है, वह नय-प्रमाण का आश्रय लेता है, व्याकरण - प्रसिद्ध कारकों का आश्रय लेता है, स्वयं विचार कीजिये - क्या एकान्त रूप से, एक रूप अद्वैत-भाव से कर्त्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, अधिकरण, ये कारक किस प्रकार घटित होंगे? . .....सिकुड़ना, पकना, आदि क्रियाएँ भी नहीं बनेंगी तथा प्रमाण से प्रमेय को जानने वाली क्रियाएँ भी नहीं बनेंगी, लोक-व्यवस्था भी भंग हो जाएगी, न शासक होगा, न शासन की आज्ञा का पालक होगा । अहो ! अद्वैत-पक्ष से एक जटिल प्रश्न है कि आप और आपका पक्ष ये भी दो हैं, आपका सिद्धान्त स्व- मुख से ही बाधित हो जाता है। ऐसा लगता है, जैसे-कि कोई युवा अपने मित्र से कहता हो कि मेरे मित्र ! मेरे पिता-श्री तो बाल-ब्रह्मचारी हैं और भैया! थोड़ा विचार तो करो - जब बेटा स्वयं खड़ा है और कहता है कि मेरे पिता - श्री बाल- ब्रह्मचारी हैं ? तो क्या बेटे का कथन सम्यक् है?... अद्वैत की सिद्धि हेतु से होती है कि वचन मात्र से? ... यदि हेतु से कहते हो, तो यह हेतु है, यह साध्य है, इसप्रकार द्वैत हो जाएगा । यदि साधन के बिना अद्वैत की सिद्धि कहते हो, तो इसप्रकार वचन - मात्र से द्वैत की सिद्धि क्यों नहीं होगी ?......दोनों में समान स्थिति है ।
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ज्ञानियो ! आत्मा को नित्य रूप मानना अद्वैत - पक्ष की पुष्टि समझना चाहिए, जो कि घोर मिथ्यात्व है, उसकी सम्पूर्ण धार्मिक, व्यावहारिक क्रियाओं का लोप होता है, यदि उन्हें करता है, तो वह व्यर्थ सिद्ध होंगी। कहा भी है