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श्लो. : 3
बिना विशेष का सामान्य गधे के सींग की तरह असत् है, और बिना सामान्य के विशेष भी गधे की सींग की तरह असत् है, अतः सामान्य- विशेष - धर्म से युक्त ही वस्तुत्व - गुण है, तभी अर्थ - क्रिया- कारित्व घटित होता है, यानी कार्य करने की स्थिति बनती है।
स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
द्रव्यत्व गुण - जिस शक्ति के निमित्त से द्रव्य में सदा उत्पाद - व्यय होता रहता है, उसे द्रव्यत्व - गुण कहते हैं । आचार्य उमास्वामी महाराज ने उक्त विषय को स्पष्ट किया है
सद्द्रव्यलक्षणम् ।।
उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य-युक्तं सत् ।।
-तत्त्वार्थसूत्र, 5/29
/ 45
- तत्त्वार्थसूत्र, 5/30
द्रव्य का लक्षण सत् है, जो उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य इन तीनों से युक्त है । द्रव्यस्य भावो द्रव्यत्वम् ।
- आलापपद्धति, सूत्र 96 द्रव्य के भाव को द्रव्यत्व गुण कहते हैं । द्रव्य अपने-अपने गुण-पर्याय में परिणमन करता है।
प्रमेयत्वगुण - जिस शक्ति के निमित्त से द्रव्य किसी न किसी के ज्ञान का विषय होता है, उसे प्रमेयत्व गुण कहते हैं ।
प्रमेयस्य भावः प्रमेयत्वं प्रमाणेन स्व-पर-स्वरूपं परिच्छेद्यं प्रमेयम् । । - आलापपद्धति, सूत्र 98
प्रमेय के भाव को प्रमेयत्व कहते हैं । प्रमेय का अर्थ होता है- प्रमाण के द्वारा ज्ञेय होना । इसी गुण के कारण द्रव्य किसी न किसी के ज्ञान का विषय होता है।
अगुरुलघुत्व-गुण
अगुरुलघोर्भावोऽगुरुलघुत्वम्, सूक्ष्मा अवाग्गोचराः ।
प्रतिक्षणं वर्तमाना आगमप्रामाण्यादभ्युपगम्या अगुरुलघुगुणाः । । - आलापपद्धति, 99
अगुरुलघु के भाव को अगुरुलघुत्व गुण कहते हैं, आगम में प्रत्येक द्रव्य में अगुरुलघुनामक गुण माने गये हैं। ये अगुरुलघु-नामक गुण सूक्ष्म हैं, वचन के अगोचर हैं,