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श्लो. : 3
उनके सम्बन्ध में कुछ कहना शक्य नहीं है, वे प्रति-समय प्रत्येक द्रव्य में वर्तमान रहते हैं और आगम-प्रमाण द्वारा ही जाने जाते हैं। सूक्ष्म-तत्त्वों को हमें आस्था का विषय बनाना चाहिए, आवश्यक नहीं है कि सम्पूर्ण तत्त्व क्षयोपशम- ज्ञान का विषय बन जाएँ, अपने क्षयोपशम के अनुसार आगम का अर्थ नहीं निकलता, अपितु आगम के अनुसार क्षयोपशम की वृद्धि करनी चाहिए । भूतार्थ- ज्ञाता आगम के सूक्ष्म से सूक्ष्म विषयों को जानने का प्रयास एवं पुरुषार्थ दोनों करता है, फिर अति सूक्ष्म तत्त्व है, जहाँ पर श्रुत नहीं पहुँच पाता, वहाँ सम्यग्दृष्टि तत्त्व - ज्ञानी जिन - आज्ञा मानकर शीघ्र स्वीकार करता है, आगम में अपनी शंका नहीं करता, दृष्टि आज्ञा- सम्यक्त्व पर रखता है, उसे यह दृढ़ आस्था होती है कि जिन - देव विपर्यास नहीं करते। कहा भी हैसूक्ष्मं जिनोदितं तत्त्वं हेतुभिर्नैव हन्यते । आज्ञासिद्धं तु तद्ग्राह्यं नान्यथावादिनो जिनाः । ।
- आलाप पद्धति, सूत्र 100 पर उद्धृत
जिन भगवान् के द्वारा कहा गया तत्त्व सूक्ष्म है, युक्तियों से उसका घात नहीं किया जा सकता, उसे आज्ञा- सिद्ध मानकर ही ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि जिनदेव के द्वारा कहे गये आगम को प्रमाण मानकर अगुरुलघु-गुणों को स्वीकार करना चाहिए । इस गुण के कारण एक द्रव्य दूसरे द्रव्य रूप एक गुण दूसरे गुण-रूप परिणमन नहीं करता, और न एक द्रव्य के गुण बिखरकर पृथक-पृथक हो जाते हैं ।
प्रदेशत्व-गुण- जिस शक्ति के निमित्त से द्रव्य का कुछ न कुछ आकार होता है, उसे प्रदेशत्व - गुण कहते हैं ।
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स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
प्रदेशस्य भावः प्रदेशत्वं क्षेत्रत्वम्, अविभागि- पुद्गल-परमाणुनावष्टब्धम् । । - आलापपद्धति, सूत्र 100 अर्थात् प्रदेश के भाव को प्रदेशत्व कहते हैं। एक अविभागी पुद्गल - परमाणु जितने क्षेत्र को रोकता है, या व्याप्त करता है, या घेरता है, उसे प्रदेश कहते हैं ।
चेतनत्व-गुण
चेतनस्य भावो चैतन्यमनुभवनम् ।
- आलापपद्धति, सूत्र 101