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________________ श्लो. : 3 स्वरूप-संबोधन-परिशीलन 143 आधार द्रव्य है, क्योंकि द्रव्य अस्तित्व से ही गुण-पर्यायों का अस्तित्व है। जो द्रव्य न होवे, तो गुण-पर्याय भी न होवे। द्रव्य-स्वभाव-वत् और गुण-पर्याय स्वभाव है, और जैसे द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावों से पीतत्वादि गुण तथा कुण्डलादि पर्यायों से अपृथक्भूत सोने के कर्म पीतत्वादि गुण तथा कुंडलादि पर्यायें हैं, इसलिए पीतत्वादि गुण और कुंडलादि पर्यायों के अस्तित्व से सोने का अस्तित्व है। यदि पीतत्वादि गुण तथा कुंडलादि पर्यायें न होवें, तो सोना भी न होवे। इसीप्रकार द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावों से गुण-पर्यायों से अपृथक्भूत द्रव्य के कर्म-गुण-पर्याय हैं, इसलिए गुण-पर्यायों के अस्तित्व से द्रव्य का अस्तित्व है। जो गुण-पर्यायें न होवें, तो द्रव्य भी न होवे और जैसे- द्रव्य, क्षेत्र, काल भावों से सोने से अपृथक्भूत ऐसा जो कंकण का उत्पाद, कुंडल का व्यय तथा पीतत्वादि का ध्रौव्य –इन तीन भावों का कर्त्ता साधन और आधार सोना है, इसलिए सोने के अस्तित्व से इनका अस्तित्व है, क्योंकि जो सोना न होवे, तो कंकण का उत्पाद, कुंडल का व्यय और पीतत्वादि का ध्रौव्य -ये तीन भाव भी न होवें। इसी प्रकार द्रव्य, क्षेत्र, काल भावों को करके द्रव्य से अपृथग्भूत ऐसे जो उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य -इन तीन भावों का कर्त्ता, साधन तथा आधार द्रव्य है, इसलिए द्रव्य के अस्तित्व से उत्पादादि का अस्तित्व है। जो द्रव्य न होवे, तो उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य, –ये तीन भाव न होवें, और जैसे द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावों से अपृथग्भूत जो सोना है, उसके कर्त्ता साधन और आधार कंकणादि, उत्पाद, कुण्डलादि, व्यय पीतत्वादि ध्रौव्य -ये तीन भाव हैं, इसलिए इन तीन भावों के अस्तित्व से सोने का अस्तित्व है। यदि ये तीन भाव न होंवें, तो सोना भी न होवे, यदि ये तीनों भाव न होवें तो द्रव्य भी न होवे, -इससे यह बात सिद्ध हुई कि द्रव्य, गुण और पर्याय का अस्तित्व एक है, और जो भी द्रव्य हैं, सो अपने गुण-पर्याय स्वरूप को लिये हुए हैं, अन्य द्रव्य से कभी नहीं मिलता, इसी को स्वरूपास्तित्व कहते हैं। सादृश्यास्तित्व इह विविह लक्खणाणं लक्खमणमेगंसदिति सत्वगयं । उवदिसदा खलु धम्मं जिण वणवसहेण पणणत्तं।। -प्रवचनसार, गा. 5 इस श्लोक में वस्तु के स्वभाव का उपदेश देने वाले गणधरादि देवों में श्रेष्ठ श्री वीतराग सर्वज्ञ-देव ने ऐसा कहा है कि नाना प्रकार के लक्षणों वाले अपने स्वरूपास्तित्व से जुदा-जुदा सभी द्रव्यों में सामान्य रूप से रहने वाला “सद्-रूप” सामान्य लक्षण
SR No.032433
Book TitleSwarup Sambodhan Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhasagar Acharya and Others
PublisherMahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
Publication Year2009
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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