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ओच्छब छाय रह्यो, आनंद-घन उमड़ाय रह्यो। जन-मन-मोर उम्हाय रह्यो, नृत्य सजोर रचाय रह्यो।। हृदय झकोर सुणाय रह्यो, लोचन-वन लहराय रह्यो। देश-देश रा मानवी, आवै देखण दीक्षा-दृश्य।।
१७. आयो अवसर सामनै काइ, जन जोधाण पिछाण।
शुभ दीक्षा-संस्कार रो काइ, मांड्यो अति मंडाण।। १८. उभय समय आडंबरे काइ, सझ-सझ जोर जलूस।
सेरी-सेरी संचरै काइ, सायं पुनि प्रत्यूष।। १६. विविध हृद्य आतोद्य स्यूंकाइ, भू-नभ एक समान।
प्रतिरव-व्याज दिगंगना काइ, संग मिलावै तान। २०. रंगराता माता महा काइ, ताता तरुण तुषार।
रविरथयातां नै हंसै, करि हणहणता हिंसार।। २१. होरी-होरी हालती काइ, लोरी मोटर कार।
ओरी-दोरी है हुई कांइ, मिनखां री भरमार।। २२. अभ्यंतर-स्थित ओपती काइ, दीक्षार्थी री ओल।
नव-भूषण-भूषित तनू काइ, संयम-हित दृढ़ कोल।। २३. पुलिस जुलुस आगै चलै काइ, पहिरी नृप-चपरास।
विविध वेष-सुविशेषता काइ, है जनता सोल्लास।। .
२थे तो जोवो रे जोवो, जोधाणे दीक्षा-झंड। मत खोवो रे खोवो, ओ अवसर मिल्यो अखंड।।
२४. मोहलां में मावै नहीं रे, नर-नार्यां रो वृन्द।
बिन लाभे आभे चढ्या मनु, तारक चंद दिनंद ।। २५. है महिला-मेलावड़ो रे, घर-घर गोखै गोख।
छाजां छतां बरामदां रे, ऊभी रूंसां रोक।। २६. इतरेतर चरचा करै वनितावां रो समवाय।
दिव्य वेषधारी इता रे, जै दीक्षा-हित जाय।।
१. लय : वीर विराज रह्या २. लय : चूरू री चरचा
- उ.४, ढा.७ / ६१