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________________ २७. नेवर लग जेवर जुड्या रे, ज्यारै अंग सजोर। घृत घेवर कुमिणा नहीं रे, भले अरोगो भोर ।। २८. रंग सलूणो अंग को रे, जोबन जंग-प्रसंग। क्यूं मूकै चूकै 'रखै रे, अथवा अपर उमंग।। २६. वा कोइ पंथ-भदंत की रे, भुरकी है भरपूर। तिण योगे सब एकठा रे, संयम ग्रहै सनूर ।। ३०. एक-एक-हित इतर में रे, भरसक उधम होय। बिन उधम अनुपम मिलै रे, देखो बीस रु दोय ।। ३१. सहियां! तेरापंथ को रे, भाग्य बखाणो आज। नहिं कोइ तुलना में तुलै रे, तोलो अपर समाज ।। ओच्छय छाय रह्यो। ३२. विस्मय-भरी विमर्शणा काइ, जण-जण री अणपार। यश-परिमल श्री पूज्य री काइ, प्रसरी घर-घर द्वार।। लावणी छंद आ अभिनव दीक्षा-मोच्छब-छवि जोधाणै। जो परतख पेखी अपणो भाग्य बखाणै।। ३३. अब दीक्षा-तिथि निर्णीत प्रीत-युत आई, तब रश्मिरमण निज रुचिर रोचि प्रसराई। कल-कल-रव-कूजित विहग बधाई गाई, मंदिर-मंदिर झणणण झल्लरि झणणाई। तज शयन सयन जन नयन-अयन उघराणै।। ३४. अब परम पूज्य दीक्षा-मंडप में आया, 'सरदार स्कूल प्रांगण' में घणां सुहाया। च्यारूं तीरथ ग्रह-गण-नक्षत्र कहाया, सिंहासन शोभै गणपति उडुपति-छाया। अन्यान्य मतालंबी मन मोजां माणै।। १. लय : वीर विराज रह्या ६२ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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