________________
'जिज्ञासा रो, समाधान है श्रीमुख अनुभव वाणी । मृदु भाषा रो, श्रोतागण पर असर अनश्वर जाणी ।।
२८. अनुभव सब अपणो-अपणो है, मुश्किल तो तपणो-खपणो है । जीवन स्थिर-जोगे धपणो है ।। २६. ज्ञानेश्वर सोलह बरसां रो, गीता रो भाष्य लिख्यो प्यारो । शंकर प्रह्लाद न विस्मारो ।। ३०. पच्चास बरस रो अनुभव है, करणै स्यूं सब कुछ संभव है। कोइ युग की छाया अभिनव है ।। (ओ) एकांगी आग्रह अनुचित है। संतुलित भावना हित मित है ।। नहिं श्रमण-संस्कृती री धारा । देखो अ झिलमिलता तारा ।।
३१. शिशुवय ही दीक्षा समुचित
है
३२. वर्णाश्रम री करड़ी कारा,
1
३३. संयम रा सब अधिकारी है, जदि जीवन घन संस्कारी है जो अप्रतिबद्ध विहारी है । ३४. तेरापथ - दीक्षा री सरणी, दरसाई कठिन कठिन सारी शंकां री
करणी । संवरणी ।। ३५. चौथे उल्लासे आखी है, आ छट्ठी ढाळ सुसाखी है। क्षण-क्षण गुरुवर स्मृति राखी है ।।
ढाळः ७. दोहा
१. श्री गुरुवर-मुख सांभळी, दीक्षा - रीत-रिवाज । आत्म-साधना को अमल, ओ निमित्त निर्व्याज ।। २. समाधान अवधान-युत, शंकावां रो सर्व ।
सुण श्रोता उल्लासमय, आस्थाशील अगर्व ।। ३. विद्वेषी मन में बढ्यो, अब दुगुणो आक्रोश । ईर्ष्या मत्सर-भाव में, रहै न अंतर होश । ।
१. लय : उभय मेष हिव आहुड़िया
२. ज्ञानेश्वरी गीता के लेखक महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत । ३. आदि शंकराचार्य ।
४. हिरण्यकश्यप का पुत्र भक्त प्रह्लाद ।
उ.४, ढा. ६, ७ / ८६