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६. कार्तिक में वेरागिणी - वेराग्यां री देखी असहन - जन- हृदय, नई ऊपजी जे माटे खाटे नहीं,
७.
भीड़ ।
पीड़ । ।
इलाज |
आयुर्वेद जन्त्र मन्त्र बूंटी जड़ी, निवड़ी सब निष्काज ।। ८. नूतन प्राक्तन ग्रन्थ में, नहिं है शमन - उपाय ।
पर-सुख-दुर्बलता व्यथा, अद्भुत कथा कहाय ।। [युग्म ] ६. एक-एक करतां चढ़ी, वर संख्या बाईस । विद्वेषी मन में बढ़ी, भीतर-भीतर टीस । । १०. शिशु-दीक्षा पर सामठो, भीषण उठ्यो विरोध । प्रसर्यो सारै शहर में घर-घर अप्रतिरोध । । ११. जोर-शोर प्रारंभियो, आंदोलन छापाबाजी में बह्या, पुर-पुर को
अविचार | प्रचार ।।
'अयि पन्थपते! नाबालिग दीक्षा नहिं समय सरावै । अयि विमलमते! अरजी ऊपर कृपया गौर करावै ।।
१२. कइ मानव गुरुवर रै पासे, बोलै निज आंतर अभिलाषे । दिल विह्वल- सो शिशु-संन्यासे, अयि पंथपते ! १३. जो बालक वय में नान्हो है, वैराग्य बणायो बहानो है । अरु पहर लियो मुनि-बानो है, अयि पंथपते ! १४. सारो भविष्य अंधारा में, बहसी कुण- कुण-सी धारा में ? परिवर्तन विविध विचारां में, अयि पंथपते ! १५. जब जोबन री कलियां खिलसी, ललितालक-बालकता ढलसी । अरु बीज वासना रो फलसी, अयि पंथपते ! १६. तब चितड़ो डांवाडोल हुसी, अभिनव रामत रंगरोळ हुसी । फिर दीक्षा रो के मोल हुसी ? अयि पंथपते ! १७. उमड़यो वेराग दिखावा में, या सतियां - सन्त सिखावा में । पिण नहिं आभ्यंतर भावां में, अयि पंथपते ! १८. अनुभव स्यूं सब पितवाणी है, आधुनिक युवक री वाणी है। युग रै छकणै स्यूं छाणी है, अयि पंथपते !
१. लय : उभय मेष हिव आहुड़िया
उ.४, ढा.६ / ८७