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'ल्यो जबर झंड स्यूं, पूज्य पधारै पुर जोधाण में।
३०. पग-पग ऊपर गुरु-मुख-सम्मुख, जन निज शीष झुकावै।
मुखड़े रो जीकारो प्यारो, सुण-सुण विरह भुलावै रे।। ३१. नगरी सगरी रा पुन आछा, साचा शंकर आया।
अभयंकर तीर्थंकर-पटधर, चाहे ज्यूं उपमाया रे।।
गुणिजन! गावो रे दिल ध्यावो, गणिवर मरुधर में आया।
३२. जाटावासे अति उल्लासे, गुरुवर पधराया।
भंडारी-भवने मनु गगने, दिनकर दीपाया।। ३३. मुनि गुणतीस अठाइस श्रमणी, गुणसरिता न्हाया।
ढाळ पांचवीं वाचक गायक घूम-घूम गाया।।
ढाळः ६.
दोहा
१. जोधाणे पावस जम्यो, रम्यो धर्म रो रंग।
सारै शिक्षितवर्ग में, बढ़ती रही उमंग।। २. सूयगडांग प्रवचन चल्यो, प्रातःकाल सटीक।
रामचरित्र विचित्र वर, निशि व्याख्या निर्भीक।। ३. सावण स्यूं आवण लग्या, देश-देश रा लोक।
पुर-दरसण सहज्यां मिलै, गुरुवर पांवांधोक।। ४. पर्युषण मोच्छब-युगल, भर्यो भादवो भाल।
आसोजां में उदयपुर-स्पेशल आई चाल।। ५. करै प्रार्थना पूज्य! अब, पधरावो मेवाड़।
खड्या अडीकै आपनै, ऊंचा-ऊंचा प्हाड़।।
१. लयः म्हारी रस सेलड़ियां २. लय : सहियां! गावो हे बधावो ३. सोवनमलजी-संपतमलजी भंडारी के मकान में ४. आचार्यश्री भिक्षु का चरमोत्सव और कालूगणी का पट्टोत्सव
८६ / कालूयशोविलास-२