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१६. आज ही दिवाळी दसरावो, है महापर्व म्हारै भाव रे।
घर-घर में मंड्यो सावो, केहड़ा तकदीर जोर खावै रे।। २०. कहण-कहण रा गुरुवर है, परमेश्वर री उपमा पावै रे।
सागी जेहड़ा जिनवर है, कुण-कुण नहिं गुण-गरिमा गावै रे।। २१. चालो साझा साम्हेळो, चख श्रुति रो अंतर मिट ज्यावै रे।
अहमहमिकया दै ठेलो, गुरु खिदमत खाटै इण खाहै रे।।
'ल्यो जबर झंड स्यूं, पूज्य पधारै पुर जोधाण में।
२२. गावत रागिणि गुण-अनुरागिणि नारि सुभागिणि आवै । - सकल सुमागिणि शिवपथ-भागिणी वंदन-विधि विरचायै रे ।। २३. चोक-चोक में ओक-ओक में, लोक थोक मिल सारै।
तेरापंथ-भदंत पूज्य री, ऊभा बाट निहारै रे।।
सोहै स्याम सलूणो, तेरापथ-सम्राट दिन-दिन ठाट दूणो।
२४. जोवै जन जोधाण-निवासी, छोगां-सुत छवि छायै रे।
वीर विभू रो विमल नमूनो, इण नगरी में आवै रे।। २५. गोखै-गोख झरोख-झरोखै, आ मोकै री माया रे।
पेसत 'सोजतियै दरवाजै', निकट निजर गुरु आया रे।। २६. खमा-खमा क्षमतागर! सागर! जागर! जिन! अवतारी! रे।
शांतसुधागर! विमल-विभागर! बार हजार हि वारी रे।। २७. दीनानाथ! अबंधव-बंधव! निर्धन-धन! जन-तारी रे।
हे असहाय-सहायक! लायक! त्रिभुवन-नायक! भारी रे। २८. भैक्षय-भर्ता! भार-विमर्ता! दोहग-हर्ता! दानी! रे।
जग-जरता जर स्यूं उद्धर्ता! जय-दुन्दुभि बजड़ानी रे।। २६. आज शहर री सेरि सुरंगी, चोक-चोहटा चंगा रे।
गावो बधावो मोद मनायो, घर आई गुरु-गंगा रे ।।
१. लय : म्हारी रस सेलड़ियां २. लय : जोयै विमलपुरी नां यासी रे
उ.४, ढा.५ / ८५