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४१. 'गुरु अल्प प्रयासे रे, भ्रम-तामस नाशे रे,
आदित्य उजासे रे, खद्योत न भासे रे। चौथे उल्लासे, चौथी गीतिका रे।।
ढाळः ५.
दोहा
१. दिवस एक दस आसरै, पचपदरै गुरु वास।
समवसरै बालोतरै, हरै भविक मन प्यास ।। २. हरे-भरे ज्यूं रूंखरे, झरे वदन-घन-बूंद।
टरे परे ज्यूं उपदरे, फरे भविक सित कुंद ।। ३. परे-परे घन रे फिरे, वरे न सो स्व-विकास। __ज्यूं भोंहर घर भीतरे, परे न सूर्य-प्रकाश ।। ४. परे चरण गुरुदेव रे, भाल परवरे खास।
रयणराशि रो घर-घरे, कब रे हुवै निवास ।। ५. दस वासर वासरपती, ज्यूं भ्रम-तामस नाश।
भैक्षवगण-वासरपती, भास्वर-विभा-विलास ।। ६. गण-कल्लोल अलोल-मति, गुण-जलराशि सुबोल।
खमा-खमा गरजार-युत, जंगम-जलधि जसोल।। ७. पान करै व्याख्यान-रस, कइ आभ्यंतर स्नान।
कइ गुण-रमण ग्रहै गिणी, कई करै निध्यान।। ८. कइ आह्वान सुमान-युत, कइ मध्यस्थ महान।
लीलायुत कीला करै, पाप-प्रताप मिटान।।
गुणिजन! गावो रे, दिल ध्यावो गणिवर मरुधर में आया, मरुधर में आया रे, पुर-पुर पावन करवाया।
मरुधर में आया रे, घर-घर धवल मंगल छाया।। ६. शहर जसोल अमोल त्रयोदश वासर बगसाया।
शासन-भासन विश्व-विकासन विहरत शोभाया।।
१. लय : इक्षु रस हेतो रे २. लय : सहियां! गावो हे बधावो
उ.४, ढा.४,५ / ८३