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३१. अहाछन्न', ओसन्न', कुसीलिया',
पासत्था रो परिचय आखिर है दुखदाई रे। देखो दिल दृढ़ता आनंद री,
पाली पटवाजी खायक-सी समकित पाई रे।। ३२. वर पूज्य वचोऽमृत पान स्यूं,
मानो गत-चेतन-तन चेतनताई आई रे। सहज्यां कर टाळो टाळोकरां, शासण-रंग-सुरंगे रग-रग खूब रचाई रे।।
दोहा ३३. पांचां में जो प्रमुखता, पाई निंदा पाण।
फतेचंद पागल हुयो, संचित पाप-प्रमाण ।। ३४. भैक्षवगण स्यूं जो टळे, तन-मन त्रपा-विहीन।
उदाहरण हित बो बण्यो, मानो वसन-विहीन।। ३५. भैक्षवगण-निंदक सदा, जड़ निर्जीव निसत्त।
उदाहरण ल्यो देखल्यो, दरसावै उन्मत्त।। ३६. भैक्षवगण स्यूंपतित रो, अनुचित ही आलाप।
परिचय परतख देण हित, प्रतिपल करै प्रलाप।। ३७. भैक्षवगण स्यूं भ्रष्ट रो, तड़फड़णो बेकाम।
प्रगट नमूनो निरखल्यो, पड़-पड़ छोली चाम।। ३८. भैक्षवगण-निंदक लहै, जकड़ कर्म-संबंध।
निपट निदर्शन-रूप है, हुयो शृंखला-बंध ।। ३६. अणआलोचे जो तजे, गुरु-शासन संकेत।
दीन दशा दरसाण ही, हृदय धमीड़ा लेत।। ४०. गच्छ-बहिष्कृत रो हुवै, जीवन अर्थ-विहीन।
मृत्यु-प्राप्त दौविध्य में, दिखलावै ओ सीन ।।
१-४. देखें प. १ सं. १३ ५. देखें प. १ सं. १४ ६. देखें प. १ सं. १५
८२ / कालूयशोविलास-२