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१४. वय बालक व्रत-पालक मुनि रै, मन मालक रो मोद रे।
विद्या-होद प्रमोदे झूलै, नहिं भूलै गुरु-गोद रे।। १५. कइ वाचंयम है वाचंयम, वर्जित विषय-विकार रे।
कइ अणगार लार गुरुवर के, उपशम-भाव-अगार रे।। १६. कइ मुनि चार्चिक कइ मुनि तार्किक, कइ मुनि वार्तिकधार रे।
कइ मुनि शाब्दिक कइ मुनि आर्थिक, हार्दिक भाव सुधार रे।। १७. कई तपोधन कइ श्रुति-शोभन, थोभन मन-मातंग रे।
कइ कविताकर भाव विशद भर, शासन शेखर संग रे।। १८. कइ मुनि लेखक इतर उवेखक, प्रेखक समय-रहस्य रे।
कइ मुनि गणनायक गुणगायक, सज्झायक सवयस्य रे।। १६. जाग विराग त्याग ऐहिक सुख, उन्मुख निर्वृति-माग रे।
चाखै चंचरीकता-साखै, प्रभु-चरणाब्ज-पराग रे।। २०. श्रमणी गुरु-अनुगमणी खमणी, श्रमणीश्वर संघात रे।
इंद्रिय-दमणी विकथा-वमणी, आक्रमणी भय सात रे।। २१. तज जग-एश वेष अति बंधुर, सुंदर मंदिर सेज रे।
जननी जनक कनकमय भूषण, दूषण दिल उद्वेज रे।। २२. अकनकुमारी कन्या वारी, भारी दीपै ओळ रे।
गुरु-चरणां री बण अनुचारी, पाळे चरण अमोल रे।। २३. परम पवित्रा कर्म-विजित्रा, 'चित्राबेलि'-सहेलि रे।
गुरु-अनुशासन सहज सुखासन, करै सुकृत-शत केलि रे।। २४. मानो मूर्तिमती स्फूर्ती-सी, हस्तकला-पारीण रे।
श्रमशीला शिक्षा दीक्षा में, विकसित सर्वांगीण रे।। २५. संयम-रंगे रंगिणि चंगिणि, सज्ज मतंगिणि चाल रे।
शील सुरंगिणि उज्ज्वल अंगिणि, लंघिणि जग-जंबाल रे।। २६. कितोक वर्णन निज मुख वरणूं, मुनि-अज्जा रो आज रे।
पुण्य-पुंज गुरुवर रो प्रगट्यो, व्रति-व्रतिणी रै ब्याज रे।। २७. नाथ अलौकिक आथ अलौकिक, साथ अलौकिक साथ रे।
बात अलौकिक ख्यात अलौकिक, लौकिक लोक-व्रात रे।। २८. नहिं विस्मय गुण-निलय गणीश्वर, नहिं विस्मय गण-भाल रे।
नहिं विस्मय गण-गणप समन्वय, विस्मय पंचम काल रे।।
१. इहलोक भय, परलोक भय, आदान भय, अकस्मात भय, आजीविका भय, मरण भय
और अपयश भय।
उ.४, ढा.३/ ७७