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________________ २६. अंतरंग वैभव स्यूं विभु रो, मरुधर प्रति प्रस्थान रे। तीजी ढाळ रसाल निनाणव, तारानगर सुथान रे।। ढाळः ४. दोहा १. प्रथम डीडवाणै गुरु, सात रात विश्राम । दो वासर बस कोलियै, खाटू ठाट-हगाम।। २. करी मधुर-वचने खरी, खाटू-जन अरदास। होळी चौमासी सुधी, गणपति कर्यो निवास।। ३. तब स्यूं यात्रा-दौर में, मध्याह्ने व्याख्यान। ____ महिमागर सूंप्यो मनैं, करुणा करी महान।। ४. चढ़ी बड़ी खाटू चतुर, चउ दिन चांदारूण। ___ डेगाणै पथ ईड़वै, पादार्पण शुभ सूण।। ५. पादू में साधूपती, जाणै जादू कीध। लोक लुभाणा रातदिन, सुगुरु-सेव चित दीध।। ६. मुनिप पधारै मेड़तै, हाकम विनय निभाल। ___'कालू' कालू गणपती, पावन कियो कृपाल।। ७. मध्याह्ने व्याख्यान में, लोक दिगंबर जैन। नारी शिव-अधिकारिणी, सुणत बण्या बेचैन।। ८. गणिवर गोम्मटसार जो, मान्य दिगंबर ग्रन्थ। साक्षि-रूप रख सामनै, वर्णवियो विरतंत।। ६. जीवकांड सुविचार में, गाथा-त्रयी अबीण। क्षपक-श्रेणि विवरण-वरण, देखो प्रगट प्रर्वीण।। १०. पुरुष-वेद स्त्री-वेद-युत, अरु जो कृत्रिम क्लीव। एक समय में खपक लै, एता-एता जीव ।। १. डीडवाना के तत्कालीन थानेदार नत्थराजजी भंडारी (जोधपुर) पुलिस के साथ कालूमणी __ की अगवानी में गए और उन्होंने गुरुदेव से वहां कई दिन रहने का निवेदन किया। २. जोधपुर-निवासी मानमलजी दूगड़ ३. कालू नामक ग्राम ४. देखें प. १ सं. ६ ७८ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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