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________________ ११. करुणामय पीयूष-दृष्टि री, अतिशय वृष्टि करावै रे। नवदीक्षित लघु-वय संतां नै, बलि-बलि स्वाम सुझावै रे।। १२. पढ़ो चितारो सोवो बैठो, ज्यूं 'तुलसी' चित चावै रे। सहज बणी पोशाल, बाल मुनि कठिन परिश्रम ठावै रे।। १३. परम पोष पूरी स्वतंत्रता, मुझनै नाथ दिरावै रे।। तिण कारण निर्माण स्व-पर रो, नित स्मृति-पथ सरसावै रे।। १४. हजारीमलजी रामपुरिया री, बा हेली मन भावै रे। ऊपरली मंजिल री मेयां, नित स्मृति-पथ सरसावै रे।। १५. सम्मुख कमरो नई रकम रो, प्रवचन गुरु फरमावै रे। चहल-पहल रंगरळी गळी में, नित स्मृति-पथ सरसावै रे।। १६. च्यार बज्यां री नींद निराळी, जागो सुगुरु जगावै रे। योगासन-अभ्यास सवेरै, नित स्मृति-पथ सरसावै रे।। १७. आ'र समय हेली ऊपर स्यूं, प्रतिदिन पूज्य बुलावै रे। ऊंचे स्तर रो 'शुभ-विनोद' बो, नित स्मृति-पथ सरसावै रे।। १८. नथमलजी बुधमलजी कोडो, दुलीचंद दिल दावै रे। झूमर नेम प्रेम स्यूं पढ़ता, नित स्मृति-पथ सरसावै रे।। १६. सकल इशारै स्हारै चलता, हुलसित हार्दिक भावै रे। कड़ी शासना पूर्ण समर्पण, नित स्मृति-पथ सरसावै रे।। २०. मरुधर देश-निवासी मानव-राशी तिण प्रस्तावै रे। अति अभिलाषी पावस-हेते, आवत नभ गुंजावै रै।। गुरु घड़ि-घड़ि पलक-पलक निज हक लख, खड़ि-खड़ि बाट निहारै हो, अति दुखभारै हो। गणिवर! विरहवती मरुभूमिका।। २१. बार-बार मैं कीन्ही हो, घणि हठभीनी हो, ___गणिवर! विनती पुर जोधाण री। पिण अब लों आश न दीन्ही हो, मृदु स्वर झीनी हो, गणिवर! पावस-हित पधराण री।। १. लय : घड़ि दोय आवतां पलक इक जावतां उ.४, ढा.१ / ६६
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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