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ढाळः १.
दोहा १. अब सुजानगढ़ में सुगुरु, ठायो शुभ चउमास।
उगणीसै नवतीवती संवति सुमति विमास ।। २. मुनि छत्तीस सती श्रुती बंयालीस विशाल।
गुरु-इंगित आकार अनु, चाल-ढाल खुशहाल ।। ३. सूत्र ‘भगवती' भगवती, पूज्य भारती ख्यात। ___ भाव-विशद परिषद सुखद, मंगल समय प्रभात।। ४. ऊपर चंदचरित्र रो, वर्णन विमल विचित्र।
सँहस किरण करणां मिषे, सविता सुणै सचित्र ।। ५. श्रवणोत्सुक श्रोता करै, अहमहमिकया पहल।
जनता स्यूं अविदित नहीं, चतुरदुरग री चहल ।।
आनंद आवै रे। आनंद आवै रे, गुरु-गौरव गातां, रूं-रूं रंग रचावै रे।
आनंद आवै रे, आनंद आवै रे, लख अद्भुत बातां, रग-रग नृत्य मचावै रे।
आनंद आवै रे।
६. च्यार मास सुखवास, सुजन-मन धार्मिक भाव दृढ़ावै रे। ___ओ सुजानगढ़ और लाडनूं, एकमेक बण ज्यावै रे।। ७. छापर चाड़वास बीदासर, पड़िहारो पनपावै रे।
राजलदेसर और रतनगढ़, अधिको लाभ कमावै रे।। ८. दूर-निकट-वासी जन-राशी, प्रतिदिन आवै जावै रे।
एक केंद्र री है आ महिमा, सारै जग महकावै रे।। ६. परम कृपाकर मुझनै गुरु, ‘षड्दर्शन' पाठ पढ़ावै रे। __ अरु 'प्रमाणनयतत्त्व' ग्रंथ रो, गौरव हृदय बिठावै रे।। १०. 'श्री कालूकल्याणमन्दिरम्' पादपूर्ति स्तुति-भावै रे।
संवत्सरि-दिन भर परिषद में सुण मुझ मन सहलावै रे ।। १. लय : दारू दाखां रो २. देखें प. १ सं. २
६८ / कालूयशोविलास-२