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तीसरी शिखा में कालूयुग में हुए संघीय विकास का उल्लेख विविध संस्मरणों के माध्यम से किया गया है। कुछ मधुर संस्मरण प्रस्तुत ग्रन्थ के रचनाकार आचार्यश्री तुलसी के जीवन से जुड़े हुए हैं, जिन्हें पढ़ने से कालूगणी के व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया का बोध होता है। इसी क्रम में कुछ अन्य साधुओं के प्रसंग भी संग्रहीत किए गए हैं। संस्कत विद्वानों के प्रति कालगणी का आकर्षण और पंडितमानी विद्वानों को दिया जाने वाला प्रशिक्षण भी हृदयग्राही है। शिक्षा और कला के क्षेत्र में प्रोत्साहन के साथ-साथ कालूगणी ने साधुओं और श्रावकों को उनके कर्तव्य का बोध भी करवाया है। संघीय विकास में जुड़े हुए कतिपय साधु-साध्वियों का उल्लेख रचनाकार की प्रमोद भावना को अभिव्यक्ति देने वाला
चौथी शिखा के प्रारंभिक पद्यों में कालूगणी की प्रशिक्षण कला को रूपायित करने के लिए उनके द्वारा प्रदत्त कुछ उदाहरणों का उल्लेख किया गया है। छह से पन्द्रह तक दस पद्यों में स्वयं रचनाकार की आपबीती घटनाओं का चित्रण है। ये घटनाएं शिष्य के प्रति गुरु के वात्सल्य और शिष्य की छोटी-बड़ी स्खलना पर दिए गए उपालम्भ का सजीव निदर्शन हैं। अग्रिम तेरह पद्यों में बाल साधुओं के साथ किए गए विनोद, अहिंसा की विजय, समभाव का परिचय, साधुओं पर किए गए अनुशासन, प्रेरणा, मनौवैज्ञानिक प्रयोग तथा सारणा-वारणा से सम्बन्धित अनेक घटनाओं के संकेत हैं।
२६ से ४० तक बारह पद्यों में पूज्य कालूगणी के विश्वास प्राप्त श्रावकों का उनकी कुछ विशेषताओं के साथ नामांकन किया गया है। तीन पद्यों में कालूगणी द्वारा की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही का संकेत है। इतनी घटनाओं का उल्लेख करने के बाद भी रचनाकार की स्मृति में बहुत घटनाएं शेष थीं। सब घटनाओं की प्रस्तुति अशक्य मानकर लेखनी को विराम दिया गया।
पांचवीं शिखा की रचना पूज्य कालूगणी के गुणानुवाद से शुरू हुई है। उनके अनिर्वचनीय गुणों को सीमित शब्दों का विषय बनाने का संकल्प व्यक्त करते हुए रचनाकार ने सबसे पहले उनकी आचारनिष्ठा का वर्णन किया है। कालूगणी गुणों के पक्के पारखी थे। वे गलती का प्रतिकार करते थे। आचार-निष्ठ और विनम्र शिष्यों की पूरी संभाल रखते थे। आगमों में आचार्य के जितने गुण बतलाए गए हैं, वे सब कालूगणी में मूर्तिमान थे। गुरु के गुणों की व्याख्या को असंभव मान कर आचार्य श्री ने उस दिशा में गतिशील लेखनी को विराम देने का चिंतन किया। किंतु लेखनी रुकी नहीं तो रचनाकार ने उसकी दिशा बदल दी।
गुरु के साथ बिताए विशेष क्षणों की स्मृतियों ने उत्प्रेरित किया तो
५६ / कालूयशोविलास-२