________________
कालूयशोविलास ग्रन्थ की रचना हो गई, इस तथ्य को प्रकट करते हुए रचनाकार ने तेरापंथ की पूरी आचार्य-परम्परा का स्मरण कर लिया। ग्रन्थ-रचना के आधार का उल्लेख करते हुए कवि ने जिस विनम्रता का परिचय दिया है, उससे ग्रन्थ की गरिमा शत-सहस्रगुणित हो गई।
वि सं. २०००, भाद्रपद शुक्ला षष्ठी के दिन सायंकाल कालूयशोविलास की रचना सम्पन्न हुई। जिस दिन और जिस समय कालूगणी का स्वर्गवास हुआ था, लगभग उसी समय ग्रन्थ की संपन्नता होने से कवि ने उन क्षणों का साक्षात्कार-सा कर लिया। गंगापुर के स्थान पर गंगाशहर को स्थापित कर प्रसंगवश शय्यातर ईशरचन्दजी चौपड़ा तथा क्षेत्र का भी मूल्यांकन किया गया है। उस समय गंगाशहर में उनचालीस साधु और पचपन साध्वियां थीं। तेरापंथ संघ में साधुओं की कुल संख्या एक सौ साठ और साध्वियों की चार सौ तेरह थी। यह कालूयशोविलास की परिपूर्णता का इतिहास हैं।
कालूयशोविलास-२ / ५७