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उनकी स्मृति में होने वाली मानसिक विह्वलता में वैयक्तिक स्वार्थों को ही निमित्त मानना चाहिए।
चौदहवें गीत में पूज्य कालूगणी के अन्त्येष्टि संस्कार का व्यवस्थित वर्णन है। स्वर्गवास के छत्तीस मिनट बाद मुनिश्री मगनलालजी के निवेदन पर आचार्य श्री तुलसी ने कालूगणी के पार्थिव शरीर का व्युत्सर्ग कर चउवीसत्थव किया।
रंग-भवन के नीचे वाले तल पर चौक में पूज्य कालूगणी के पार्थिव शरीर को पट्टासीन किया गया। रात भर श्रावक लोग भजन-कीर्तन करते रहे। कारीगरों ने पूरी रात काम कर पैंसठ खण्डी बैकुण्ठी तैयार की। उदयपुर से सरकारी लवाजमा आया। सप्तमी को मध्याह्र में व्यवस्थित रूप में शवयात्रा निकली। ॐ जय कालू गुरुदेव' -इस आरती के समवेत संगान में एक ओर श्रद्धा-भक्ति के स्वर गूंज रहे थे तो दूसरी ओर कालूगणी के जीवन की संक्षिप्त झांकी मिल रही थी।
गंगापुर शहर में परिभ्रमण के बाद सोरती दरवाजे से बाहर रंगलालजी हिरण के खेत में पूज्य कालूगणी का अन्त्येष्टि संस्कार किया गया। लगभग तीस हजार लोग उस यात्रा में सम्मिलित थे। सूर्य के समान प्रकाशमान पूज्य गुरुदेव का पार्थिव शरीर कैसे विलीन हुआ, इसका पूरा विवरण प्रस्तुत गीत में उपलब्ध है।
पन्द्रहवें गीत में कालूगणी के स्वर्गवास के बाद पूर देश की स्थिति का चित्रण किया गया है। टेलीग्राम से स्वर्गवास के संवाद प्राप्त होते ही एक बार सब लोगों को बड़ा आघात-सा लगा। उन्हें अनुभव हुआ कि जैन जगत का एक तेजस्वी नक्षत्र अस्त हो गया। यत्र-तत्र स्मृति-सभाओं का आयोजन हुआ। बीकानेर रियासत में पूरी बंदी रही। कलकत्ता के अनेक बाज़ार बंद रहे। बम्बई, असम, बंगाल आदि प्रदेशों में भी व्यापक रूप में बंदी रखी गई। दैनिक, साप्ताहिक एवं मासिक समाचार पत्रों में टिप्पणी के साथ संवाद प्रकाशित किए गए। जैन तथा जैनेतर सभी लोगों के मुख पर कालूगणी का यशोगान थिरकने लगा।
मेवाड़ के महाराणा भोपालसिंहजी को कालूगणी के स्वर्गवास तथा देश भर की स्थितियों के संवाद मिले तो उन्होंने सुन्दरलालजी मुरड़िया को उपालम्भ देते हुए कहा-'बीकानेर रियासत में इतनी जबरदस्त बन्दी हुई और आपने मुझे सूचना तक नहीं दी। बीकानेर रियासत में बन्दी हो और मेवाड़ में सर्वालय बंदी न हो तो अपने राज्य की हलकी लगती है। मुझे आज अनुभव हुआ है कि हीरालालजी मुरड़िया नहीं रहे। यदि वे होते तो ऐसी गलती नहीं करते।' सुन्दरलालजी ने अपनी भूल स्वीकार की। छठे उल्लास के सोलहवें गीत में मातुश्री छोगांजी के सामने उत्पन्न नई परिस्थिति, उनकी मनःस्थिति, मनःस्थिति का बदलाव, लोगों द्वारा फैलाई गई अफवाह एवं जन-प्रवाद और मातुश्री के साहस भरे उत्तर मनोवैज्ञानिक परिवेश
कालूयशोविलास-२ / ५३