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________________ सूर्योदय के बाद उपवास का पारणा हो गया। संघ में प्रसन्नता की लहर आ गई। चौविहार उपवास में कुछ भी घटित हो सकता था, पर पारणा होने के बाद कुछ निश्चिन्तता आ गई। दिन के तीन प्रहर ठीक बीत गए। चतुर्थ प्रहर में पुनः श्वास का वेग और बेचैनी बढ़ गई। लगभग पौने छह बजे कालूगणी ने युवाचार्यश्री से पूछा-'दिन कितना शेष है ?' पैंतीस मिनट दिन की बात सुन वे बोले- 'पानी पीने के लिए मुझे बिठाओ।' बैठने की स्थिति नहीं होने से लेटे-लेटे ही पानी लेने का निवेदन करने पर कालूगणी बोले-'तरल वस्तु लेटे-लेटे नहीं लेनी चाहिए। पानी पीकर लेटते ही श्वास की गति तेज हो गई। मुनि मगनलालजी स्वामी के बारे में पूछने पर संत उन्हें बुलाने गए। वे बहुत शीघ्रता से चलकर आए। उन्हें देखते ही कालूगणी बोले- 'अबै।' मुनिश्री मगनलालजी उनके भाव समझ गए। उन्होंने पूछा-'आपको संथारा कराएं?' कालूगणी की स्वीकृति मिलते ही बिना एक क्षण खोए उन्हें संथारा पचखा कर शरण सूत्र सुनाने लगे। चतुर्विध । संघ की उपस्थिति में युवाचार्य तुलसी के देखते-देखते सात मिनट के संथारे में कालूगणी का स्वर्गवास हो गया। छह बजकर दो मिनट पर संथारे का स्वीकार और नौ मिनट पर संपन्नता। शासनपति कालूगणी का स्वर्गगमन देख वासरपति (सूर्य) भी ग्यारह मिनट बाद ही अस्त हो गया। तेरहवें गीत में आचार्य तुलसी के मस्तिष्क में उभरे स्मृतियों के सैलाब को मार्मिक अभिव्यक्ति दी गई है। सत्ताईस वर्षों तक धर्मशासन की संभालकर कालूगणी सबको छोड़कर चले गए। उस समय संघ में १३६ साधु और ३३३ साध्वियां थीं। लाखों श्रावक-श्राविकाएं गुरु के विरह में बेहाल हो गए। बानवे वर्ष की वृद्ध साध्वी मातुश्री की मनःस्थिति भी एक बार तो विचित्र-सी हो गई। कालूगणी की सन्निधि में जो उनकी मीट निहारते रहते थे, वे सब विरह-व्यथा से व्याकुल हो . गए। __ प्रस्तुत गीत की नौवीं से बत्तीसवीं तक २४ गाथाओं में आचार्य तुलसी ने अपने मन-मस्तिष्क को जिस रूप में खोलकर रखा है, उस प्रसंग को पढ़ने वाले पाठक भी द्रवित हुए बिना नहीं रह पाते। प्रत्येक गाथा बहुत अधिक भावपूर्ण है। उस पद्यबद्ध संक्षिप्त या अव्यक्त अभिव्यक्ति को पूरे विस्तार के साथ प्रस्तुत किया जाए तो एक स्वतंत्र ग्रंथ तैयार हो सकता है। गीत के उपसंहार में संपूर्ण घटना को भवितव्यता मानकर विश्राम लिया गया है। साथ ही यह निरूपण भी किया गया है कि कालूगणी बहुत सौभाग्यशाली थे। उनके जीवन में किसी प्रकार की न्यूनता नहीं रही। वे कृतकाम होकर गए। ५२ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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