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साध्वी झमकूजी-समुच्चय के सब कार्यों और बोझ की बख्शीश।
गुरुकुलवासी शेष साध्वियां-शीतकाल में दो वर्ष तक सब कार्यों की बख्शीश।
__कालूगणी ने लगभग दो घड़ी तक बाढ़ स्वर से शिक्षा और बख्शीशों की बौछार करके डॉक्टरों एवं वैद्यों को भी चकित कर दिया। भगवान महावीर ने परिनिर्वाण से पहले सोलह प्रहर तक लगातार देशना दी, वैसे ही कालूगणी ने नाड़ी की गति विषम होने पर भी जो परिश्रम किया, वह उनके विलक्षण व्यक्तित्व की निशानी बनकर रह गया।
बारहवें गीत में पूज्य कालूगणी के शरीर की स्थिति में आए उतार-चढ़ावों के साथ अनशनपूर्वक हुए महाप्रयाण का चित्रण है। तृतीया की रात को हुआ श्वास का प्रकोप एक बार शान्त हो गया। डॉक्टर अश्विनीकुमार और पंडित रघुनन्दनजी बोले-'गुरुदेव का शरीर अधिक दिन टिकनेवाला नहीं है। फिर भी इस विषय में निश्चित रूप से कुछ भी कहना मुश्किल है।' डॉक्टर यन्त्र लगा हार्ट की गति का परीक्षण करने लगा तो कालूगणी ने कहा-'डॉक्टर! ऐसे क्या देखता है? मेरा कलेजा यों धड़कने वाला नहीं है।'
चतुर्थी के दिन सुबह से शाम तक हजारों लोगों ने पूज्य कालूगणी के दर्शन कर स्वयं को धन्य अनुभव किया। मेवाड़ के अन्य क्षेत्रों में चातुर्मास करने वाले कुछ साधु-साध्वियों ने भी अवसर का लाभ उठाया। आगम की आज्ञा के आधार पर वे चातुर्मास में विहार कर गंगापुर पहुंच गए। दिन भर जमावट की स्थिति रही।
सायंकाल श्वास का वेग बढ़ा, जिसका असर रात भर रहा। संतों ने निवेदन किया कि आज शरीर की स्थिति नाजुक लग रही है। कालूगणी बोले-'अभी रात का समय है और कल संवत्सरी है। परसों सूर्योदय तक मुझे चारों आहार का त्याग है। बीच में ही आयुष्य पूर्ण होने की स्थिति में यावज्जीवन का त्याग है।' इस प्रकार उन्होंने दृढ़ता के साथ सागारी अनशन स्वीकार कर लिया।
पंचमी के दिन युवाचार्य तुलसी संवत्सरी का प्रवचन करके आए। कालूगणी उठने या बोलने की स्थिति में नहीं थे। वह पूरा दिन बेचैनी में बीता। पश्चिम रात्रि में स्वास्थ्य में कुछ अनुकूलता का अनुभव होते ही कालूगणी बोले-'कल तो मैंने रात-दिन पूरा विश्राम ही किया। युवाचार्य से सुखसाता भी नहीं पूछी। अब उसे शीघ्र बुलाओ।' युवाचार्यश्री उपस्थित हुए तो उनके मस्तक पर अपना वरद हाथ टिका कर बोले-'कल इतना लम्बा प्रवचन किया। प्यास तो नहीं लगी?' युवाचार्य अभिभूत हो गए।
कालूयशोविलास-२ / ५१