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________________ ने कहा- ' - 'तीन नाड़ियों में एक नाड़ी पूरी तरह से बंद हो गई है।' उस समय पूज्य कालूगणी ने अपने युवाचार्य को याद किया । युवाचार्य तुलसी तत्काल आए और उनके निकट बैठ गए। कालूगणी ने एक भरपूर नजर से युवाचार्य को देखा और अपनी वेदना को भूलकर कुछ विशेष निर्देश दिए 'तुलसी ये साधु-स -साध्वियां तुम्हारी शरण में हैं। तू शासन की संभाल में सजग रहना। संघ के छोटे-बड़े सब साधु-साध्वियों के प्रति एक समान नीति का प्रयोग करना। संघ में बालक, वृद्ध और बीमार हैं, उन सबकी सेवा कराना । सब साधु-साध्वियों को संयम-साधना में सहयोग देना । सारणा वारणा के क्रम में यथोचित साधुवाद और उपालम्भ देना । तुम्हारा सबसे बड़ा दायित्व है संघ की सुरक्षा । इस दायित्व को दृढ़ता के साथ निभाना है । संघीय पुस्तकों में नए-पुराने जितने पन्ने हैं, उन सबको सुरक्षित रखना । दीक्षा लेने के इच्छुक व्यक्ति प्रार्थना करेंगे। उन्हें अवसर हो तो दीक्षा देना, अन्यथा दीक्षा के लिए निषेध कर देना । मूल बात है चारित्र । वह रत्न के समान अनमोल है। शुद्ध चारित्र की पालना में सर्वाधिक सजग रहना हैं ।' कालूगणी की शिक्षा सुनकर युवाचार्य तुलसी को ऐसा अनुभव हुआ मानो गुरुदेव ने उनको रत्नों की अनमोल राशि सौंपी है। जैसे परदेश जाने वाले पुत्र को पिता सीख देता है, वैसे ही कालूगणी ने उनको शिक्षा दी है। जिस प्रकार जयाचार्य ने युवाचार्य मघवा को और मघवागणी ने युवाचार्य माणक को विविध शिक्षाएं दीं, वैसे ही कालूगणी ने कृपा की है। कुछ क्षण विश्राम कर कालूगणी साधु-साध्वियों को अनेक प्रकार की बख्शीशें करवाईं, उनका विवरण इस प्रकार है मुनि मगनलालजी - नेश्राय के उपकरण समुच्चय में रखने की बख्शीश । कारण से औषधि और उष्ण आहार ले तो विगय बख्शीश । मुनि चौथमलजी - समुच्चय के बोझ की बख्शीश । संघीय सब कार्यों की बख्शीश । मुनि शिवराजजी - दस हजार गाथाओं की बख्शीश । मुनि हाथीमलजी - चार हजार गाथाओं की बख्शीश । मुनि कुन्दनमलजी - शीतकाल में तीन वर्ष तक सब कार्यों की बख्शीश । मुनि सुखलालजी - शीतकाल में तीन वर्ष तक सब कार्यों की बख्शीश । मुनि चम्पालालजी - शीतकाल में तीन वर्ष तक सब कार्यों की बख्शीश । मुनि सोहनलालजी- शीतकाल में तीन वर्ष तक सब कार्यों की बख्शीश । गुरुकुलवासी शेष साधु - नौ बारी की बख्शीश । ५० / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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