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________________ शासन से साधु-साध्वियों की और साधु-साध्वियों से शासन की शोभा होती है। * संघ की शोभा आचार्य से है, आचार्य की शोभा संघ से है तथा संघ और आचार्य से जिनशासन की शोभा होती है । पूज्य कालूगणी के अमूल्य शिक्षा - रस का आस्वादन कर तत्रस्थ सभी मुनि धन्य और कृतपुण्य हो गए। आठवें गीत में मुनिश्री मगनलालजी ने सब संतों के साथ कालूगणी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर निवेदन किया- 'प्रबल असाता के बावजूद आपने जो श्रम किया है, वह इतिहास का एक दुर्लभ पृष्ठ बन गया। आपश्री ने हमें पूरा कर्तव्यबोध दे दिया, पर श्रीमुख से किसी का नाम नहीं फरमाया। यदि आप कृपा करें तो हमारी दुविधा समाप्त हो जाए ।' मुनिश्री मगनलालजी की बात सुन कालूगणी बोले - 'आपका कथन ठीक है, पर मुझे उपयुक्त समय पर उचित तरीके से जो काम करना हो, उसे मैं आज कैसे कर सकता हूं। वर्तमान के साधु जानते ही नहीं हैं कि युवाचार्य पद कैसे दिया जाता है तथा युवाचार्य - आचार्य एवं युवाचार्य और संघ का पारस्परिक व्यवहार क्या होता है। मैंने सोचा था कि साठ वर्ष पूरे होने पर यात्रा सम्पन्न हर थली में बीदासर पहुंचकर मांजी छोगांजी की उपस्थिति में चतुर्विध संघ के समक्ष युवाचार्य की नियुक्ति करूं और जय मघवा एवं मघवा - माणक के युग में घटित इतिहास की पुनरावृत्ति सारे संघ को प्रत्यक्ष दिखाऊं । किंतु शरीर की स्थिति देखते हुए मुझे यह सब कठिन प्रतीत हो रहा है। इसलिए अब मुझे सारा काम यहीं करना है।' अपने कथन को और अधिक स्पष्ट करते हुए कालूगणी ने कहा - 'कल तक तो मैं यूं ही बात करता रहा, पर आज आहार के बाद उसे बुलाकर अंतरंग बातचीत शुरू कर दी। जो कुछ शेष रहा, वह भी कहना और लिखना है । मुझसे नहीं लिखा जाएगा तो वह लिखेगा।' इस प्रकार कालूगणी ने एक स्पष्ट संकेत दे दिया। मुनि मगनलालजी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए विश्राम करने का निवेदन किया। नौवें गीत में युवचार्य-नियुक्ति का विस्तृत वर्णन है । अमावस्या और तृतीया के मध्य में दो दिन थे । एकम को मध्याह्न में कालूगणी ने मुनि तुलसी को दो विशेष निर्देश दिए । द्वितीया को मुनि तुलसी का केशलोच हुआ। उसी दिन सायंकाल कालूगणी ने चम्पक मुनि को सूर्योदय होते ही स्याही और लेखन सामग्री लाने का निर्देश दिया । तृतीया के दिन सूर्योदय के समय कालूगणी ने प्रसन्नता के साथ ४८ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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