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बढ़ रही थी. पिभी कालूगणी प्रवचन करने पधारते। संतों ने नहीं पधारने के लिए निवेदन किया तो उन्होंने कहा-'प्रवचन में नहीं जाने से सब जगह बात फैल जाएगी।' पर शरीर के साथ ज्यादती कब तक चलती।
सावन शुक्ला त्रयोदशी से प्रवचन, परिषद में प्रतिक्रमण, उपासना कराना आदि कार्य बंद हो गए। मुनि तुलसी उपदेश देने लगे और मुनिश्री मगनलालजी व्याख्यान देने लगे। इससे कुछ दिन पहले मुनि तुलसी से रात्रि में रामचरित्र शुरू करवाया, पर वह दो-तीन दिन से अधिक चल नहीं पाया।
कालूगणी के रोग की असाध्यता ने पंडित रघुनंदनजी को भी निराश कर दिया। उन्होंने किसी अन्य वैद्य से चिकित्सा कराने का निवेदन किया। इसका कालूगणी ने दृढ़ता से प्रतिवाद कर दिया। उन्हीं दिनों बीमारी के कारण राजलदेसर में स्थिरवासिनी साध्वीप्रमुखा कानकुमारीजी का स्वर्गवास हो गया। कालूगणी ने उनके पण्डित मरण का उल्लेख किया।
कालूगणी के स्वास्थ्य की गंभीर स्थिति ने मुनिश्री मगनलालजी को व्यथित . कर दिया। दीक्षा के बाद वे बचपन से ही कालूगणी के साथी बनकर रहे थे। उन्हें संदेह होने लगा कि अब यह जोड़ी कैसे रहेगी ? कालूगणी अब तक आश्वस्त थे कि देर-सबेर इस बीमारी से छुटकारा हो जाएगा। इसलिए वे मुनिश्री मगनलालजी के मन को मजबूत बनाते रहे।
उन्हीं दिनों मुनिश्री मगनलालजी ने सब संतों को सुझाव दिया कि अभी वे अन्य सब कार्यों को गौणकर पूज्य कालूगणी की सेवा के प्रति विशेष रूप से जागरूक रहें।
भाद्रपद कृष्णा नवमी को एकान्त अवसर देखकर डॉक्टर अश्विनीकुमार ने पूज्य कालूगणी और मुनिश्री मगनलालजी को निवेदन किया कि अब स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार की संभावना क्षीण हो गई है। इसलिए आपको संघीय दृष्टि से जो व्यवस्था करनी है, उसमें विलम्ब नहीं करना चाहिए। डॉक्टर की बात सुन कालूगणी ने पहली बार स्थिति की गंभीरता का अनुभव किया।
पांचवें गीत में पंडितजी रघुनंदनजी ने मुनिश्री मगनलालजी के सामने निराशासूचक बात प्रकट की। इसी तथ्य को पुष्ट करते हुए मुनिश्री कुन्दनमलजी, मुनिश्री चंपालालजी और मुनिश्री चौथमलजी ने कहा-हम सब लोग निश्चिंत हैं। संघ की भावी व्यवस्था के बारे में चिन्ता करने वाले एकमात्र आप हैं।
उचित अवसर देखकर मुनिश्री मगनलालजी कालूगणी के पास पहुंचे और बोले- 'डॉक्टर अश्विनीकुमार और पंडित रघुनन्दनजी की निराशाजनक बातें सुनकर हमारी चिंता बढ़ रही है। हम आपके स्वास्थ्य की मंगल कामना करते हैं, पर
कालूयशोविलास-२ / ४५