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________________ RE के आधार पर उपचार शुरू कर दिया। तीसरे गीत का प्रारंभ लोगों में फैली एक अफवाह के साथ किया गया है। कुछ नासमझ लोगों ने कहा कि यदि कालूगणी हिरणों की हवेली छोकर अन्यत्र प्रवास करें तो स्वस्थ हो जाएं। क्योंकि वहां यक्ष, योगिनी आदि का निवास है। यह बात सुन कुछ श्रावक घबरा गए। उन्होंने कालूगणी से स्थान बदलने का निवेदन किया। कालूगणी ने निर्विकल्प भाव से कहा-'हम भूतपिशाच का भय सहन कर लेंगे, पर स्थान बदलकर शय्यातर के मकान को विवादास्पद नहीं बनाएंगे।' साता-असाता मूलतः कर्म-सापेक्ष है। उपचार एक व्यवहार है, उसे पण्डित जी कर ही रहे हैं। __ आयुर्वेद विद्या में निष्णात पंडित रघुनंदनजी ने पहले रोग का निदान किया। उनके अनुसार कई रोगों ने एक साथ शरीर पर आक्रमण कर दिया था, उनमें उदर-व्याधि, मंदाग्नि, विषम ज्वर, सूखी खांसी, शोथ, लीबर की विकृति, मधुमेह आदि प्रमुख थे। पंडितजी ने अपने अनुभव के आधार पर चिकित्सा शुरू कर दी। साधु-साध्वियां दिन-रात सेवाकार्य में सजग हो गए। किंतु स्वास्थ्य में किंचित भी सुधार नहीं हुआ। पंडितजी का सारा प्रयत्न राख में घी-सिंचन की तरह व्यर्थ हो गया। ___समुचित पेय से प्यास न बुझे, मनोगतं भोजन से भूख न मिटै और दीया जलाने पर भी अंधकार न मिटे तो चिंता का होना स्वाभाविक है। सही चिकित्सा के बावजूद स्वास्थ्य-लाभ न होने से पंडितजी चिंतित हो गए। आसपास ऐसे कोई वैद्य नहीं थे, जिनसे परामर्श लिया जा सके। आखिर यह चिंतन हुआ कि जयपुर के राजवैद्य लच्छीरामजी यहां आ सकें तो उनका परामर्श उपयोगी हो सकता है। पंडितजी ने संस्कृत के श्लोकों में बीमारी और चिकित्सा की पूरी बात अंकित कर दी। वृद्धिचंदजी गोठी और पूरणचंदजी चौपड़ा पंडितजी का पत्र लेकर जयपुर पहुंचे। जयपुर में स्वामी लच्छीरामजी को पंडितजी का पत्र सौंपा गया। उन्होंने पत्र पढ़ा। गंगापुर आने की स्थिति न होने के कारण पंडितजी के नाम से संस्कृत श्लोकों में उत्तर लिखा। गोठीजी और चौपड़ाजी वह पत्र लेकर पहुंचे। पंडितजी ने पत्र खोलकर पढ़ा। वैद्यजी के द्वारा पंडितजी की चिकित्सा का अनुमोदन किया गया था। इससे उत्साहित होकर वे पुनः चिकित्सा में जुट गए। ___ चौथे गीत में कालूगणी के स्वाथ्य को लेकर निराशा की स्थिति का विवेचन है। सरदारशहर से समागत डॉक्टर श्यामनारायणजी आदि कई डॉक्टरों ने बीमारी. की असाध्यता का अनुभव किया और आरोग्य की आशा छोड़ दी। शरीर में दुर्बलता ४४ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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