SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मंगलपन के आठ दोहों में तेरापंथ धर्मसंघ को कुछ नए प्रतिमानों के माध्यम से रूपायित किया गया है। तेरापंथ को विस्तार देने वाले आचार्य भिक्षु के प्रति कृतज्ञता प्रकट की गई है और कालूगणी की स्मृति के साथ छठे उल्लास की रचना का संकल्प व्यक्त किया गया है। प्रस्तुत उल्लास के प्रथम गीत में कालूगणी के गंगापुर शहर में प्रवेश का विवेचन है। आषाढ़ शुक्ला द्वादशी के दिन अमृतसिद्धि योग में भव्य जुलूस के साथ पूज्यवर पधारे। हजारों दर्शकों ने उस दृश्य को देखा। कालूगणी के आकर्षक व्यक्तित्व और साधना के तेज ने उनके अस्वस्थ शरीर को भी स्वस्थ जैसा बना दिया। पदयात्रा से क्लांत होने पर भी उन्होंने एक मुहूर्त तक प्रवचन किया। रंगभवन के मालिक रंगलालजी हिरण को शय्यातर का लाभ मिला। चौबीस साधु और सत्ताईस साध्वियां कालूगणी के साथ थीं। उदयपुर से गंगापुर तक लगभग आठ सौ मील की यात्रा हुई। यह सब प्रथम गीत का प्रतिपाद्य है। कालूगणी के गंगापुर-चातुर्मास के समय उनकी आज्ञा से साधुओं के छत्तीस और साध्वियों के पचास सिंघाड़े (वर्ग) देश में विहार कर रहे थे। साधुओं की कुल संख्या १४१ थी और साध्वियों की ३३४ । दूसरे गीत के प्रारम्भ में दो विरोधी स्थितियों का चित्रण है। एक ओर वर्षा का जोर, तपस्या का रंग और चतुर्विध धर्मसंघ में उत्साह का वातावरण, दूसरी ओर कालूगणी के शरीर की चिंतनीय स्थिति। रास्ते में यथोचित इलाज नहीं होने से व्रण विकराल रूप लेता गया तथा मधुमेह के कारण घाव ज्यों-का-त्यों बना रहा। अन्न के प्रति अरुचि, निरन्तर ज्वर, लीबर की विकृति, खांसी और शोथ के कारण शरीर इतना कमजोर हो गया कि एक ग्रास लेने में भी तकलीफ होने लगी। शारीरिक दुर्बलता के कारण पंचमी समिति के लिए दूर जाना मुश्किल हो गया। प्रवचन करने में कठिनाई पैदा हो गई। श्रावक-श्राविकाओं के लिए उपासना का अवसर दुर्लभ हो गया। उस स्थिति में एक सुझाव आया कि यदि आयुर्वेदाचार्य पंडित रघुनंदनजी आ जाएं और चिकित्सा का दायित्व संभाल लें तो वांछित लाभ हो सकता है। इधर उक्त चिंतन चल रहा था, उधर पण्डितजी अचानक गंगापुर पहुंच गए। कालूगणी के शरीर की स्थिति देखकर वे चकित रह गए। मुनि श्री मगनलालजी ने जावद से लेकर गंगापुर तक की सारी स्थिति विस्तार के साथ पण्डितजी को बताकर कहा-'पंडितजी! अब जो कुछ करना है, उसके बारे में आप ही सोचें।' पंडितजी ने नेत्र और नाड़ी देखकर रोग का निदान किया और अपने अनुभव कालूयशोविलास-२ / ४३
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy